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Dr. Srimati Tara Singh
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बैल सांड की व्यथा

 

बैल सांड की व्यथा


बाप बूढ़ा हो गया तो घर के बाहर फैंकते,
उपयोगी रहा नहीं तो घर के बाहर फैंकते।
कल तलक उपयोगी काम करता खेत में,
आज अनुपयोगी बता घर के बाहर फैंकते।

थे सभी जंगल हमारे जिसको तुमने काट डाला,
काम हम आये तुम्हारे फिर भी तुमने बाहर निकाला।
है बहुत कृतघ्न मानव बस स्वार्थ हित ही सोचता,
उसको हम दुश्मन लगें, दूध घी से जिसको पाला।

गाय को कहते हो माता, जन्मों का कहते हो नाता,
बैल भी उसकी सन्तानें, खेतों में वह साथ निभाता।
मारते हो लाठी डंडे, बरछी भाले भी घोंपते हो,
है समय बहुत ही कठिन, हमको बचाओ हे विधाता।

अ कीर्ति वर्द्धन

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