Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बंधनों से मुक्त होकर, इस जगत में क्या करोगे

 
बंधनों से मुक्त होकर, इस जगत में क्या करोगे,
साँस है तो आस है, विश्वास खोकर क्या करोगे?
बंधनों के बंधन से बंध, निर्लिप्त होना सीख लो,
कमल से जल में रहो, जल तज कर क्या करोगे?

अपेक्षाओं के भँवर में, उलझी हुई है ज़िन्दगी,
कर्तव्य तज अधिकार की आस में है ज़िन्दगी।
दायित्वों का निर्वहन, बिना किसी फल की चाह,
सन्तुष्टि अहसास कराती, ज़िन्दगी को ज़िन्दगी।

अनन्त कीर्ति वर्द्धन

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ