बंधनों से मुक्त होकर, इस जगत में क्या करोगे,
साँस है तो आस है, विश्वास खोकर क्या करोगे?
बंधनों के बंधन से बंध, निर्लिप्त रहना सीख लो,
कमल से जल में रहो, जल तज कर क्या करोगे?
अपेक्षाओं के भँवर में, उलझी हुई है ज़िन्दगी,
कर्तव्य तज अधिकार की आस में है ज़िन्दगी।
दायित्वों का निर्वहन, बिना किसी फल की चाह,
सन्तुष्टि अहसास कराती, ज़िन्दगी को ज़िन्दगी।
जो मिला हमको यहाँ, क़बूल करना सीखिये,
इससे बेहतर की चाह, प्रयास करना सीखिये।
मृगतृष्णा से बच रहें, राग द्वेष नफ़रत त्यागिये,
जो प्राप्त वह पर्याप्त, सकारात्मक होना सीखिये।
हैं नज़ारे इर्द-गिर्द, गम ख़ुशी सब सामने,
बढ़ चलो सोच समझ, अच्छाई है सामने।
भटकोगे गर भँवर में, नैया कैसे पार लगेगी,
अन्तर्मन में झाँकिये, सत्य खड़ा है सामने।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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