गर एक सा मौसम रहेगा,
न कभी बरसात होगी,
ग्रीष्म ऋतु की दोपहरी शरद की न रात होगी,
तब बता मुझको सखी, बसंत की कब बात होगी?
पपीहे की आवाज क्या कूक कोयल कहानियों की बात होगी
तितलियां कैसे चुराती पुष्प से रंग न मधुकर से मुलाक़ात होगी।
न दिखेगा कलियों को चूमता जब भंवरा कहीं
कलियों का चटखटे दिख जाना हे सखी
ख्वाब की तब बात होगी। अ कीर्ति वर्द्धन
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