Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेकार की बातों में हम

 

बेकार की बातों में हम, क्यों खुद को खुद उलझाते हैं, 

जिसने कुछ कोशिश की, क्यों नहीं उत्साह बढ़ाते हैं? 
मैं ही श्रेष्ठ का भाव लिये, खुद को महिमामंडित करते, 
कुछ आजू बाज़ू चमचे, क्यों ग़ैरों का मज़ाक़ उड़ाते है? 

भावनाओं का पैमाना, क्या कोई बतलायेगा, 
माँ की ममता कितनी, क्या कोई समझायेगा? 
दिव्यांग या गुणवान, बच्चा बस बच्चा ही होता, 
काला गोरा माँ नज़रों में, भेद नहीं कर पायेगा। 

 श्रेष्ठ मानकर हम खुद को, ग़ैरों में कमियाँ ढूँढें, 
अपनी करनी पता नहीं, ग़ैरों की कथनी में ढूँढें। 
छिद्रान्वेषण करना ही, जिनके जीवन का लक्ष्य, 
राम राज्य की अच्छाई तज, कोई एक बुराई ढूँढें। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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