काल खंड को मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग किया जाता है उसे काल निर्णय, काल निर्देशिका या कलेंडर कहते हैं।
दुनिया
का सबसे पुराना कलेंडर भारतीय है। इसे स्रष्टि संवत कहते हैं, इसी दिन को
स्रष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है। यह संवत १९७२९४९१२२ यानी एक अरब,
सत्तानवे करोड़, उनतीस लाख, उनचास हज़ार,एक सौ बाईस वर्ष (मार्च २०२२ विक्रम
संवत २०७८ के आरम्भ तक ) पुराना है।
हमारे
ऋषि- मुनियों तथा खगोल शास्त्रियों ने ३६० डिग्री के पुरे ब्रह्माण्ड को
२७ बराबर हिस्सों में बांटा तथा इन्हें नक्षत्र नाम दिया।
इनके नाम क्रमश निम्न हैं....
अश्विनी,
भरिणी, कृतिका, रोहिणी, म्रगसिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, माघ,
पुफा, उफा, हस्ती, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, गूला, पूषा,
उषा, श्रवण, घनिष्टा, शतवार, पु-भा, उमा तथा रेवती रखे गए।
इनमे
से बारह नक्षत्रों में चंद्रमा की स्थिति के आधार पर महीनो के नाम रखे गए
हैं। एक, तीन, पांच, आठ, दस, बारह, चोदह, अठारह, बीस, बाईस व पच्चीसवें
नक्षत्र के आधार पर भारतीय महीनों के नाम .....चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ,
आषाढ़, सावन, भादों, आश्विन, कार्तिक, मगहर , पूस , माघ व फागुन रखे गए।
प्रश्न यह है कि भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास से ही क्यों ?
वृहद नारदीय पुराण में वर्णन है कि ब्रह्मा जी ने स्रष्टि सृजन का कार्य चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही प्रारम्भ किया था।
वहाँ लिखा है....
" चैत्र मासि जगत, ब्रहम्ससर्जाप्रथमेअइति।"
इसीलिए ही भारतीय नववर्ष का प्रारंभ आद्यशक्ति भगवती माँ दुर्गा की पूजा उपासना के साथ चैत्र मॉस से शुरू करते हैं।
हमारे
ऋषि मुनियों ऩे सूर्य के महत्त्व, उपयोगिता को समझते हुए रविवार को ही
सप्ताह का पहला दिन माना। उन्होंने यह भी आविष्कार किया कि सूर्य, शुक्र,
बुधश्च, चन्द्र, शनि, गुरु, मंगल नमक सात ग्रह हैं। जो निरंतर प्रथ्वी कि
परिक्रमा करते रहते हैं| और निश्चित अवधि पर सात दिन मे प्रत्येक ग्रह एक
निश्चित स्थान पर आता है। इन ग्रहों के आधार पर ही सात दिनों के नाम रखे
गए। सात दिनों के अन्तराल को सप्ताह कहा गया। इसमें रात दिन दोनों शामिल
हैं।
ज्योतिष
गणित कि भाषा मे दिन-रात को अहोरात कहते हैं। यह चौबीस घंटे का होता है।
एक घंटे का एक होरा होता है। इसी होरा शब्द से अंग्रेजी का hour शब्द बना
है। प्रत्येक होरा का स्वामी कोई ग्रह होता है। सूर्योदय के समय जिस ग्रह
की प्रथम होरा होती है उसी के आधार पर उस दिन का नाम रखा गया है। इस प्रकार
सोमवार ,मंगलवार, बुधवार, ब्रहस्पतिवार ,शुक्रवार,तथा अंतिम दिन शनिवार पर
ख़त्म होता है।
भारतीय
ऋषि-मुनियों ऩे काल गणना का सूक्ष्मतम तक अध्यन किया। इसके अनुसार दिन
रात के २४ घंटों को सात भागों मे बांटा गया और एक भाग का नाम रखा गया
'घटी'| इस प्रकार एक घटी हुई २४ मिनट के बराबर और एक घंटे मे हुई ढाई घटी।
इससे आगे बढ़ें तो एक घटी मे ६० पल, एक पल मे ६० विपल, एक विपल मे ६०
प्रतिपल।
२४ घंटे=६० घटी
एक घटी=६० पल
एक पल=६० विपल
एक विपल=६० प्रतिपल
अगर हम काल गणना कि बड़ी इकाई देखें तो ....
२४ घंटे =१ दिन
३० दिन = १ माह
१२ माह = १ वर्ष
१० वर्ष =१ दशक
१० दशक =१ शताब्दी
१० शताब्दी =१ सहस्त्राबदी
हजारों सालों को मिलाकर बनता है एक युग। युग चार होते हैं।
कलयुग=चार लाख बत्तीस हज़ार वर्ष (४३२००० वर्ष)
द्वापरयुग =आठ लाख चौसंठ हज़ार वर्ष (८६४००० वर्ष)
त्रेतायुग =बारह लाख छियानवे हज़ार वर्ष (१२९६००० वर्ष)
सतयुग =सत्रह लाख अट्ठाईस हज़ार वर्ष (१७२८००० वर्ष)
एक महायुग =चारों युगों का योग =४३२००० वर्ष
१००० महायुग =एक कल्प
एक
कल्प को ब्रह्मा जी का एक दिन या एक रात मानते हैं। अर्थात ब्रह्मा जी का
एक दिन व एक रात २००० महायुग के बराबर हुआ। हमारे शास्त्रों मे ब्रह्मा जी
कि आयु १०० वर्ष मानी गई है। इस प्रकार ब्रह्मा जी कि आयु हमारे वर्ष के
अनुसार ५१ नील ,१० ख़राब ,४० अरब वर्ष होगी। अभी तक ब्रह्मा जी कि आयु के
५२ वर्ष एक माह,एक पक्ष के पहले दिन की कुछ घटिकाएं व पल व्यतीत हो चुके
हैं।
समय की इकाई का एक अन्य वर्णन भी हमारे शस्त्रों मे पाया जाता है...
१ निमेष = पलक झपकने का समय
२५ निमेष =१ काष्ठा
३० काष्ठा = १ कला
३० कला = १ मुहूर्त
३० मुहूर्त =१ अहोरात्र (रात-दिन मिलाकर)
१५ दिन व रात = एक पक्ष या एक पखवाडा
२ पक्ष = १ माह (कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष)
६ माह = १ अयन
२ अयन = १ वर्ष (दक्षिणायन व उत्तरायण )
४३ लाख २० हज़ार वर्ष = १ पर्याय ( कलयुग,द्वापर,त्रेता व सतयुग का जोड़ )
७१ पर्याय = १ मन्वंतर
१४ मन्वंतर = १ कल्प
वर्तमान भारतीय गणना के अनुसार वर्ष मे ३६५ दिन,१५ घटी, २२ पल व ५३.८५०७२
विपल होते हैं। तथा चन्द्र गणना के अनुसार भारतीय महीना २९ दिन,१२ घंटे,
४४ मिनट व २७ सेकंड का होता है। सौर गणना के अंतर को पाटने के लिए अधिक
तिथि और अधिक मास तथा विशेष स्थिति मे क्षय की भी व्यस्था की गई है।
उपरोक्त गणनाओं के अनुसार अभी स्रष्टि के ख़त्म होने मे ४ लाख, २६ हज़ार, ८५४ वर्ष कुछ महीने, कुछ सप्ताह, कुछ दिन, बाकी हैं।
बदला है नववर्ष, नया संवत आया है,
कुदरत ने रंग रूप, नया दिखलाया है।
फूल रहे हैं प्लाश, खेत में सरसों फूली,
चहूँ ओर हरियाली, मधुमास आया है।
सूख सूख कर पीत पत्र, वृक्षों से झडते,
नव अंकुरण आस, नया संवत लाया है।
महक रहा है बौर, आम पर कोयल कूके,
हर्षित है हर किसान, खेत लहलहाया है।
भौरें तितली घूम रहे, मकरन्द की आस में,
मधुमक्खी मदमस्त घूमती, बसन्त आया है।
छोडे कम्बल और रजाई, कोट- स्वैटर त्यागे,
शीतल मंद पवन, हवा का झौंका आया है।
घर- घर में होगा अन्न, धन- धान्य की वर्षा,
चलो मनायें उत्सव, नया संवत आया है।
करें प्रकट आभार प्रकृति का, पूजा करके,
हो कन्या सम्मान, शास्त्रों ने बतलाया है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर 251001 उत्तर प्रदेश
8265821800
--
Dr. A.Kirti vardhan
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