छेडछाड का मसला जिस दिन, सजा मौत की पायेगा,
बलात्कार जैसी घटनाओं का, नाम धरा से मिट जायेगा।
हैं बहुत से भेडिये, आज भी इस देश में,
नोच डाले बेटियों के, पंख भी इस देश में।
कत्ल किया इंसानियत का, दरिंदों ने फिर यहाँ,
लूट ली इज्जत बेटियों की, बेटों ने इस देश में।
पूछते हो आज हमसे, क्यों सजाये मौत हो,
थे कहाँ जल रही थी बेटियाँ, दोजख के परिवेश में?
दोगले हो गद्दार हो तुम, यह तो हम भी जानते हैं,
मौत बलात्कारी का ईलाज, सीख लिया इस देश में।
अ कीर्ति वर्धन
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