Kirtivardhan Agarwal
प्रेम ने कब कहा, वह प्यासा रह गया,
प्रेम ने कब जताया, घट रीता रह गया।
शून्य का होना बताता, सब खाली खाली है,
प्रेम जिस हृदय में हो, वह शून्य कब रह गया?
शून्य में विलुप्त होकर, बुद्ध भला कैसे बनोगे,
बुद्ध के हृदय में भी तो, दर्द जग का रह गया।
प्रेम ने कब विचारा, जो चाहा मुझको मिले,
प्यार चाहा प्यार बा़ंटा, प्यार बाकी रह गया।
अ कीर्ति वर्द्धन
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