कंकरीट के जंगल से, धरती पर बोझ बढ़ाया है,
वृक्ष धरा से काट- काट, बंजर इसे बनाया है।
निज स्वार्थ में मानव ने, हदें सभी कर दी पार,
खानपान में करी मिलावट, पानी में जहर मिलाया है।
बार- बार कुदरत समझाये, करता फिर भी नादानी,
बंद करे सब ताल-तलैया, मिटटी से भरवाया है।
वृक्ष कटे तो अम्बर से, सूरज भी आँख दिखाये,
कुदरत से खिलवाड़ नतीजा, अब भी समझ न पाया है।
चाहो जीवन बचा रहे और धरा बनी रहे स्वर्ग जैसी,
वेदों का सार समझ लो, संरक्षण का महत्त्व बताया है।
पंच तत्वों से बनी वसुंधरा, पंच तत्वों से ही काया,
भू, गगन, वायु, अग्नि, नीर, मिल भगवान बनाया है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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