Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दहेज़

 

दहेज़ क्या है —
क्या कन्या को शादी के समय स्वेच्छा से दिए जाने वाले धन, उपहार, वस्त्र, आभूषण को दहेज़ कहा जाना चाहिए ?शादी से पूर्व कन्या पक्ष द्वारा अपनी सुविधा तथा सामर्थ्य के अनुसार विवाह खर्च की बात वर पक्ष को बतायी जाती है और दोनों की सुविधानुसार उस राशी को खर्च किया जाता है, मेरे अनुसार यह भी दहेज़ नहीं है। फिर दहेज़ है क्या जिसके लिए प्रति दिन अखबार तथा कुछ टी वी पर बैठे वार्ताकार रोज ही वर पक्ष को कोसते रहते हैं –मित्रों,मेरे अनुसार यदि कन्या पक्ष स्वेच्छा से कोई राशि विवाह में खर्च कर रहा है वह दहेज़ नहीं है, हाँ उस स्वेच्छा से खर्च की गयी राशि से अधिक खर्च के लिए वर पक्ष द्वारा किसी भी प्रकार का दबाव बनाना दहेज़ में आता है। सामाजिक प्रतिष्ठा का बुखार स्वयं कन्या तथा कन्या पक्ष को भी रहता है। आप अपने आसपास देखना अगर कोई वर पक्ष अपने आदर्शों के कारण साधारण विवाह करना चाहता है तब भी कन्या पक्ष उसे तथा अपनी कन्या को बहुत उपहार देते हैं, और शादी से पहले यह विचार कि बिना दहेज़ शादी की बात करने वाले लडके या उसके परिवार में कोई खोट तो नहीं ?शादी के पश्चात भी कन्या पक्ष पर किसी प्रकार का दबाव बनाकर कुछ प्राप्त करना भी दहेज़ है। सवाल यह है कि यदि कन्या खुद अपनी ससुराल में मौजूद सुख-सुविधाओं से असंतुष्ट होकर अपने पिता अथवा परिवारजनो से कुछ धन या कोई अन्य उपहार मांगे तब उसे क्या कहा जाए ?एक और बात- शादी का सामान खरीदते समय कन्या हमेशा अपने परिवार जनों पर अच्छी से अच्छी, महँगी, कीमती चीजें खरीदने का दबाव बनाती है, चाहे उसके परिवार बजट ही क्यों न बिगड़ जाए, इस प्रवृति को क्या कहा जाए ?आज के दौर में माता-पिता अपनी सामजिक प्रतिष्ठा तथा दिखावे तथा सुविधा के लिए भी बड़े-बड़े होटलों, रिसॉर्ट्स पर शादी करना पसंद करते हैं जिसमे विवाह राशि का बड़ा हिस्सा खर्च होता है, क्या इसे भी दहेज़ कहा जाए ?दोस्तों, पुनः दोहरा रहा हूँ कि हमें कन्या पक्ष पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बनाना चाहिए, शादी जन्मों का सम्बन्ध है जिसमे केवल वर और कन्या नहीं अपितु दो परिवार, संस्कृति तथा अन्य रिश्तेदारों से नजदीकी बढ़ती है। हमारी सामजिक व्यवस्था इस प्रकार बनी है कि कन्या पक्ष सदैव कुछ न कुछ देने को तत्पर रहता है, फिर हाथ पसार कर छोटे क्यों बनो ? जिसने अपनी कन्या दे दी उसने सब कुछ दे दिया। वह कन्या हमारे घर की लक्ष्मी बनकर घर को चलाती है। एक निवेदन बेटियों से भी, अपने माता-पिता अथवा ससुराल में कहीं भी अनावश्यक दबाव न बनाएं, परिवार सामंजस्य से चलते हैं। आपका अच्छा व्यवहार सबसे कीमती उपहार है। अगर संभव हो सके तो परिवार की कोई भी अप्रिय बात न तो अपनी ससुराल में कहें और न ही ससुराल की बात अपने मैके में कहें जब तक की कोई ज्यादा विकट हालात न हों। शादी के समय ख़रीदे जाने वाले गहने-कपडे तथा उपहार परिवार के बजट के अनुसार ही खरीदें। ससुराल में होने वाले सामान्य झगड़ों पर बात-बात में मैके न जाएँ बल्कि बुद्धिमानी से समस्या सुलझाएं। अगर किसी कारण हालात से समझौता न हो पाये तो जो भी सच्ची बात हो उसी के आधार आगामी कार्यवाही करें, झूठी तथा गलत दहेज़ की रिपोर्ट लिखाकर किसी को भी न सताएं। हो सकता है कि कल वही घटनाक्रम आपके परिवार में घटित हो जाए तब बहुत पीड़ा होती है जब बूढ़े माँ-बाप, भाई-भाभी या अन्य निर्दोष रिश्तेदार जेल के चक्कर काटते हैं। तो मित्रों आप सब दहेज़ क्या है, किसके कारण है तथा समाधान पर विचार करें।
धन्यवाद
डॉ अ कीर्तिवर्धन


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ