Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देश बिक रहा है

 

देश बिक रहा है


 अच्छी लगती हैं बातें 
भड़काने की उकसाने की 
लडवाने की 
और 
कमजोर को भी 
ताकत का अहसास कराने की।
 कहते हैं 
बेच देंगे नदी वन तालाब 
पर क्या सोचा हमने तुमने 
उसके संरक्षण का विचार? 
कितनी बार जाते हो नदी के तट 
कब कब करी पूजा आराधना 
पुष्प अर्पण 
शायद नहीं याद होगा 
अब यह सब 
क्योंकि अब आस्था नहीं है 
भीड़ लगती है 
अनेक लोगों का स्नान करना 
एक स्थान पर 
 फूहड़ता लगती है 
घाट पर बैठे पंडित पण्डे 
ठग लुटेरे लगते हैं 
और हम 
खुद भी तो पूजा सामग्री 
प्लास्टिक पॉलिथीन 
कूड़ा कचरा 
वहीं उसी पवित्र घाट पर छोडकर 
गन्दगी बढ़ाते हैं 
और दोष प्रशासन पर लगाते हैं। 
बिगड़ती व्यवस्था 
सिमटते दायित्व 
भूलते कर्तव्य 
सीखते अधिकार 
बस यही हैं हमारे सरोकार। 
 किसने कहा 
बिक गयी नदी 
तालाब सरोवर वन उपवन, 
कोई नहीं जानता 
बस अखबार में पढ़ा 
समाचार में सुना 
विपक्ष की बौखलाहट 
और 
 हमारे दिमाग में सुरसुराहट।  
नहीं किया प्रयास 
जानने का सच 
हमने कभी 
जानते हैं क्यों 
क्योंकि व्यस्त हैं हम 
अपनी रोजी-रोटी में 
झूठी शान में 
नित नये परिधान में 
झूठी खोखली दिखावटी मुस्कान में। 
हाँ कुछ तो बिक रहा है 
कुछ मर रहा है 
कुछ झुक रहा है 
पर क्या?
कभी सोचना 
व्यवस्था बिक रही है 
आप गन्दगी फैलाएँ 
 सफाई के लिए देना होगा शुल्क 
घाट पर उपवन में 
बाजार में 
सड़कों पर 
और मर भी रहा है 
हमारा जमीर 
मानवता भाईचारा 
आपसी प्यार 
और झुक रहा है 
हमारा सर 
राष्ट्र का गौरव धर्म का अभिमान। 
पर पर तुम्हें क्या?
तुम्हें तो अवसर चाहिए 
सवाल उठाने का 
धर्म समाज राष्ट्र को बिसरा 
बिक रहा राग सुनाने का 
वैमनस्य फैलाने का। 
काश हमारे प्रयास हों 
नदी तालाब वन उपवन 
धरोहरों को संरक्षित करने के 
वन उपवन बचाने के 
नदियों को 
गन्दगी प्रदूषण से बचाने के 
प्राचीन धरोहरों को सहेजने 
संरक्षण कर 
सभ्यता संस्कृति बचाने के 
और उन सबसे अधिक 
खुद के भीतर 
और अपने बच्चों को 
संस्कार सिखाने के। 
अगर ऐसा हो सका 
संस्कारों का रोपण हो सका 
बेईमानी, भ्रष्टाचार 
अनैतिकता का निरूपण हो सका 
तो 
यकीन मानिए 
कुछ नहीं बिकेगा 
कहीं अतिरिक्त कर नहीं लगेगा 
भारत पहले भी विश्व गुरु था
फिर से विश्व गुरु बनेगा। 

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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