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Dr. Srimati Tara Singh
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धर्म और विकास

 

धर्म और विकास


 धर्म का मूल क्या है पहले इस पर चर्चा हो।जिसमें अपने आराध्य का मान सम्मान, मानवता का जीवन में पालन और दान दया के साथ दुष्टों से निपटने को शस्त्र शास्त्र का साथ अनिवार्य कहा गया है। विकास स्वभाविक प्रकिया है। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। वैदिक काल में भी मन्त्रों के साथ यन्त्रों का प्रयोग किया गया है। विकास का अर्थ भौतिक सुख नही अपितु मानवीय जीवन की आवश्यकताओं एवं राष्ट्र की उन्नति के लिये सुधार व आविष्कार करना व सर्वजन को सुलभ कराना होता है। 

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