Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गाय को माता क्यों कहते हैं ?

 

अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा एक पुस्तक “Cow is Wonderful Laboratory” अर्थात गाय एक अद्भुत प्रयोगशाला है, जारी की गयी। इस पुस्तक की चर्चा करने का उद्देश्य उन विद्वान लोगों को आयना दिखाने का प्रयास है जो भारतीय धर्म ग्रंथों, शास्त्रों एवं प्रचलित मान्यताओं का विरोध करते हैं और इतिहास से खिलवाड़ कर अंग्रेजी व मुस्लिम काल में लिखे गए झूठे व बेबुनियाद ग्रंथों को सही मानकर उनका आचरण करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सभी जीव- जन्तुओं तथा दुग्धधारी पशुओं में केवल गाय ही एक ऐसा पशु है जिसकी 180 फुट लम्बी आँत होती है। जो गाय द्वारा खाए गए भोजन को पचाने में सहायक होता है। गाय की रीढ़ की हड्डी के भीतर सूर्यकेतु नामक नाड़ी होती है जिस पर सूर्य की किरण के स्पर्श से स्वर्ण तत्व का निर्माण होता है गाय के एक क्वंटल (100 किलोग्राम) दूध में एक माशा स्वर्ण पाया जाता है। गाय के दूध व घी का रंग पीला होने का भी यही कारण है। यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है। कैरोटीन तत्व की शरीर में कमी होने पर ही मुख, फेफड़े तथा मूत्राशय में कैंसर होने के अवसर ज्यादा होते हैं। यह कैरोटीन तत्व गाय के दूध में भैंस के दूध से 10 गुणा ज्यादा होते हैं। एक बात और जिसे वैज्ञानिकों से शोध किया कि भैंस के दूध को गर्म करने पर पौष्टिक तत्व ख़त्म हो जाते हैं जबकि गाय के दूध को गर्म करने पर वह ख़त्म नहीं होते।

 

वैज्ञानिकों ने गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध किया और पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा प्राप्त होती है। इतना ही नहीं शोध से यह भी पता चलता है कि गौमूत्र में कारबोलिक एसिड होता है जो कि कीटाणुनाशक होता है तथा शुद्धता एवं स्वच्छता बढ़ाता है। इसके अलावा भी अनेक परीक्षणों से पता चला है कि गौमूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटेशियम, सोडियम तथा लैक्टोज आदि तत्व होते हैं जो मनुष्य के शरीर को हष्ट- पुष्ट बनाते हैं। गाय के गोबर तथा मूत्र को मिलाने से प्रोपलीन ऑक्साइड गैस बनती है जो बरसात लाने में सहायक मानी जाती है और एक दूसरी गैस इथलीन ऑक्साइड भी पैदा होती है जो ऑपरेशन थियेटर में काम आती है।

 

नेशनल रिसर्च इंस्टिट्यूट, करनाल (हरियाणा) से प्रकाशित एक आलेख में गाय के घी का वैज्ञानिक विश्लेषण बताया गया है जिसके अनुसार इस घी में वैक्सीन एसिड, ब्युटिक एसिड, वीटा कैरोटीन जैसे तत्व पाये जाते हैं जो शरीर में पैदा होने वाले कैंसरीय तत्वों से लड़ने की क्षमता रखते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा यह भी माना गया कि गाय के 10 ग्राम घी को दीपक में जलाने, गोबर के जलते उपलों पर डालने अथवा यज्ञ में आहुति डालने से लगभग एक टन प्राण वायु उत्पन्न होती है तथा उससे वायुमंडल में एटोमिक रेडिएशन का प्रभाव काम हो जाता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भोपाल में 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से गैस रिसाव के समय देखने को मिला। जिन घरों में गाय के गोबर, मूत्र, दूध व घी का प्रयोग था वहां गैस का प्रभाव काम पाया गया था।

 

गाय के दूध का रासायनिक विश्लेषण करने पर उसमे 87.3 %पानी, 4 % प्रोटीन्स, 4 % वसा, 4 %कार्बोहाइड्रेट्स, 0. 7 %मिनरल्स तथा ऊर्जा यानी कैलोरी 65 % पायी जाती है। इसके अलावा भी कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, क्लोरीन, लौह तत्व व विटामिन ए, बी, सी, डी भी पाये जाते हैं तथा विटामिन ए की अधिकता होती है जो शरीर को सशक्त बनाने में अधिक सहायक है।

 

रशियन वैज्ञानिकों द्वारा भी अपने शोध में पाया गया कि गाय के दूध और घी में strontian नामक तत्व है जो अणु विकरण का प्रतिरोधक है। गाय के दूध में सेरीब्रोसाडस तत्व है जो बुद्धि के विकास में सहायक है। गाय का दूध शीतल होने के कारण पित्त विकार, अल्सर, एसिडिटी तथा दाह रोगों में लाभदायक, सुपाच्य, माताओं, दुर्बल, वृद्ध, बीमार व बच्चों के लिए गुणकारी है। जलोदर नामक बिमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए पानी पीना सख्त मना होता है मगर वह भी गाय का दूध पीकर स्वस्थ हो सकता है।

 

अब बात करते हैं भारतीय धर्म ग्रंथों एवं शास्त्रों की जिन्हे सृष्टि का प्राचीनतम व वैज्ञानिक आधार पर प्रतिपादित माना जाता है, तथा जिसके सिद्धांत वर्तमान वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरे परखे हैं और जिन्हे हमारे तात्कालीन वैज्ञानिकों -ऋषि-मुनियों ने धर्म से जोड़कर हमारे बीच स्थापित किया और हमारी जीवन शैली का हिस्सा बना दिया।

 

प्रश्न यह है कि भारत में सनातन धर्म यानी हिन्दुओं के लिए गाय पवित्र व माता क्यों मानी जाती है ? हमारे शास्त्रों में कहा गया है -------

 

या लक्ष्मीः सर्वभूतानां सर्वदेवष्ववस्थिता।

धेनरूपेण सा देवी मम पापं व्यपोहतु।

नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च।

नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्रोभ्यो ममो नमः।

 

 

अर्थात जो सब प्रकार की भूति, लक्ष्मी है, जो सभी देवताओं में विद्यमान है, वह गौ रूपिणी देवी हमारे पापों को दूर करे। जो सभी प्रकार पवित्र है, उन लक्ष्मी रुपी सुरभि कामधेनु की संतान तथा ब्रह्मपुत्री गौओं को मेरा बार बार नमस्कार। वेदों में पृथ्वी को भी गाय रूपा माना गया है। गौ के श्रंगों के मध्य में ब्रह्मा, ललाट में भगवान शंकर, दोनों कानो में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य,तथा कक्ष में साध्य देवता, ग्रीवा में पार्वती, पीठ पर नक्षत्र गण, ककुद् में आकाश,गोबर में अष्टैश्वर्य संपन्न तथा स्तनों में जल से परिपूर्ण चारों समुद्र निवास करने की बात कही गयी है। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार भी गाय को समृद्धि, धन-धान्य एवं सृष्टाति सृष्ट भोज्य पदार्थों की प्रदाता बताया गया है।

 

ऋग्वेद 8/101/15 में कहा गया है ---

 

माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।

प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागार्दितिम वधिष्ट।

 

अर्थात ग शत्रुओं को रुलाने वाले वीर मरुतों की माता, वसुओं की कन्या, अदिति की पुत्री और अमृत का तो मानो केंद्र ही है। इसलिए विवेकी मनुष्यों को निरपराध तथा अवध्य गाय का वध नहीं करना चाहिए। गाय धर्म एवं संस्कृति का प्रतीक है। वेदों ने उसे श्रद्धा भाव से नमन किया है-

 

रुपायाध्ये ते नमः। (अथर्ववेद 10/10/1)

 

त्याग मूर्ति होने के कारण देवी भागवत में उसे सर्वोत्तम माता कहा गया है --

नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः।

गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदम्बिके। (9/49)

 

महाभारत के ‘अनुशासन पर्व” भीष्म पितामह महाराज युधिष्ठर को गाय महामात्य सुनाते हुए कहते हैं --

 

मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः।

वह सभी सुखों वाली है, सभी प्राणियों की माता है।

 

आदिशंकराचार्य जी ने ‘ब्रह्मोपलब्धि’ में सर्वोत्तम साधन माना है--

 

गावः पवित्रं परमं गावो मांगल्यमुत्तमम्।

गावः स्वर्गस्य सोपानं गावो धन्याः सनातनाः।

 

महर्षि चवन की गोनिष्ठा का प्रतीक नहुष को दिया गया यह उपदेश ----

 

गाबो: लक्ष्म्याः सदामूलं गोषुपाप्मा न विद्यते।

अन्नमेव सदा गावो देवानां परमं हविः।

 

गावः स्वर्गस्य सोपानं गावः स्वर्गोsपि पूजिताः।

गावः कामदुहो देव्यो नान्यात किंचित परं स्मृतम्।

 

महाकवि कालिदास ने भी ;रघुवंश; में कहा है --

 

न केवलानाम् पयसा प्रस्तिमवेही मां कामदूधां प्रसन्नाम्। (2/63)

अन्य मतों में गाय के प्रति धारणा -----

पैगम्बर मोहम्मद साहब ने “नाशियात हादी” ग्रन्थ में कहा है “ गाय का दूध और घी तुम्हारी तंदरुस्ती के लिए जरुरी है, किन्तु गाय का गोश्त नुक्सान करने वाला है।

 

“हदीस” में कहा गया है कि गाय के गोस्त से बीमारियां होती हैं तथा गाय का दूध दवाई व घी रसायन है।

मुल्ला महम्मद वाकर हुसैनी (महारुल अनवर) का कहना है कि “ गायों को मारने वाला, फलदार दरख़्त काटने वाला और शराब पीने वाला कभी बख्शा नहीं जाएगा।

 

हजरत आयशा (मुहम्मद साहब की पत्नी) ने कहा कि --” रसूल अल्लाह ने फरमाया है कि गाय का दूध शिफ़ा है और घी दवा व उसका माँस भयंकर मर्ज है। अतः उस पर छुरी नहीं चलायी जानी चाहिए।

पवित्र कुरआन में कहा गया है कि --

 

अल्लाह ने आदम को आदेश देते हुए कहा ---तुम और तुम्हारी पत्नी जब स्वर्ग में थे, उस समय हमने तुम्हे फल खाने के लिए दिए। और तुम अब जहाँ भी रहोगे वहां भी तुम्हे फल ही खाने को देंगे। (2 . 35 )

 

तुम्हारे रहने के लिए यह धरती बनाई है और सिर पर आकाश रूपी छत तैयार की है तथा आकाश से पानी बरसाया है इसलिए कि तुम्हारे खाने के लिए फल पैदा हों सकें।“(2/22)

 

सभी धर्मों ने गाय के महत्त्व को जाना समझा और अपने अनुयायियों से उसका करने के लिए भी कहा। आज विश्व में अनेक देश हैं जहाँ गाय के काटने पर मृत्यु दंड का भी प्रावधान बताया जाता है।

 

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि गाय को माता कहने का कारण हमारे ऋषि- मुनियों तथा तात्कालिक वैज्ञानिकों की शोध के पश्चात गाय की उपयोगिता ही है। एक और आश्चर्य जनक बात भी बताना उचित होगा जिसके कारण हमारे शास्त्रों में गाय को वैतरणी पार करने वाली कहा गया है “गाय कभी भी पानी में नहीं बैठती, न ही ठहरती है। इतना ही नहीं गंदे पानी तालाब की तरफ भी गाय नहीं जाती है। अगर कहीं ज्यादा पानी में गाय फंस जाए तो वह तैरती हुयी सूखे स्थान की तरफ चली जाती है। हमारे शास्त्रों में गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करने की बात भी शायद इसी खोज का परिणाम है।

 



डॉ अ कीर्तिवर्धन

 

 

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