Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गंगा स्नान पर विशेष

 
गंगा स्नान पर विशेष

जिसमे तर्पण करते ही, पुरखे भी त़िर जाते हैं,
मानव की तो बात है क्या, देव भी शीश झुकाते हैं। 

जिसमे अर्पण करते ही, सारे पाप धुल जाते हैं,
जिसके शीतल जल में, सारे अहंकार घुल जाते हैं। 

मैं गंगा हूँ
मेरा अस्तित्व 
कोई नहीं मिटा सकता है।
मैं ब्रह्मा के आदेश से 
सृष्टि  के कल्याण के लिए उत्तपन हुई।
ब्रह्मा के कमंडल मे ठहरी
भागीरथ की प्रार्थना पर
आकाश से उतरी।
शिव ने अपनी जटाओं मे 
मेरे वेग को थामा।

गौ मुख से निकली तो 
जन-जन ने जाना।
मैं बनी हिमालय पुत्री
मैं ही शिव प्रिया बनी
धरती पर आकर मैं ही
मोक्ष दायिनी गंगा बनी।

मेरे स्पर्श से ही 
भागीरथ के पुरखे तर गए,
और भागीरथ के प्रयास
मुझे भागीरथी कर गए।

मैं मचलती हिरनी सी 
अलखनंदा भी हूँ।
मैं अल्हड यौवना सी
मन्दाकिनी भी हूँ।
यौवन के क्षितिज पर
मैं ही भागीरथी गंगा बनी हूँ।
मैं कल-कल करती
निर्मल जलधार बनकर बहती
गंगा 
हाँ मैं गंगा हूँ।

दुनिया की विशालतम नदियाँ
खो देती हैं 
अपना वजूद
सागर मे समाकर।
और मैं गंगा 
सागर मे समाकर
सागर को भी देती हूँ नई पहचान 
गंगा सागर बनाकर।

फिर भला 
ऐ पगले मानव 
तुम क्यूँ मिटाना चाहते हो 
मेरा अस्तित्व 
मेरी पवित्रता में 
प्रदूषित जल मिलाकर?

डॉ अ कीर्तिवर्धन.
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुजफ्फरनगर 251001
8265821800

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