हिंदू जीवन पद्धति तथा पर्यावरण
हिंदू जीवन पद्धति तथा पर्यावरण पर चर्चा करने से पूर्व हमें जानना होगा कि हम कौन हैं? आदिकाल से सुनते आए हैं कि हम सनातनी हैं यानी हमारा धर्म और संस्कृति सनातन है। सनातन अर्थात कभी नष्ट न होने वाला। हम हिंदू हैं, हम हिंदुस्तान के रहने वाले हैं। प्रश्न आता है हिंदू कौन है? क्या भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिंदू है? हिंदू धर्म व संस्कृति क्या है? हिंदू की जीवन पद्धति क्या है? और हिंदू का पर्यावरण से क्या संबंध है? यह सब समझने के लिए पहले हिंदू के सम्बन्ध में यह समझें--
हिंदू मात्र धर्म नहीं है, भारतीय की पहचान यही है,
उदारमना सारी दुनिया में, मानवता की शान यही है।
सब धर्मों का आदर करना, हिंदू का अभिमान यही है,
वसुधैव कुटुंब है अपना, हिंदुत्व की जान यही है।
भूख गरीबी अत्याचार, सूखा भूकंप बाढ़ अपार,
हिंदू कभी न माने हार, हिंदू का जीवन आधार।
करे समर्पण हिंदू सब कुछ, सदा सनातन के चरणों में,
पाया तो प्रभु की कृपा है, खोया तो अपनी गलती है।
वेद ऋचाएं आज भी जग में, ज्ञान का सबको मार्ग दिखाती,
क्या है सृष्टि और ब्रह्मांड में, युगो युगो से यह बतलाती।
गीता का संदेश जहां को, सदा सदा से बतलाता है,
कर्म है करना फल नहीं इच्छा, हिंदू को बस यही भाता है।
हर रज कण में वास है ईश्वर, चर अचर सम्मान उसे है,
नदी तालाब वृक्षों से जीवन, प्रकृति का ज्ञान जिसे है।
पूर्व जन्म में विश्वास करें, और गायों का भी मान करें,
नदियों को माता सा पूजें, हिंदू पर अभिमान मुझे है।
सृष्टि के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के बृहस्पति अग्यम में आया है -
हिमालयं समारभ्, यावद् इन्दूसरोवरं।
तं देवनिर्मितं देशं, हिंदुस्थानं प्रचक्षते।।
अर्थात हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं। और शैव ग्रंथों में कहा गया है कि हिंदू कौन है?
हीनं दुष्यति इति हिन्दूः।
अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिंदू कहते हैं।
हिंदू की व्याख्या करते हुए स्वामी विवेकानंद कहते हैं
"यदि कोई हिंदू आध्यात्मिक नहीं है तो मैं उसे हिंदू नहीं मानता।"
अर्थात हिंदू होने के लिए धर्म अध्यात्म ही आधार है। पुनः प्रश्न आता है कि आखिर धर्म क्या है? हम कहते हैं कि हमारा धर्म सनातन है। हमारी संस्कृति सनातन है। हम हिंदू हैं जिसका उल्लेख ऋग्वेद से लेकर सभी ग्रंथों में पाया जाता है। सनातन धर्म व संस्कृति को मानने वालों को हिंदू कहा गया है। और धर्म--
सत्य अहिंसा पवित्रता दान व संयम
गुणों का नाम धर्म है।
सभ्यता का अंतरिक्ष
सामाजिक संगठन की आत्मा धर्म है। परमात्मा को खोजता जो
जीवन जिसको धारण करता धर्म है। नियमों का पालन धर्म है।
प्रकृति का संरक्षण धर्म है।
मानवता स्वमेव धर्म है।
धर्म शब्द ही जीवन का आधार है। व्यक्तिगत- सामाजिक, लौकिक- परालौकिक, दैहिक- बौद्धिक, मानसिक- शारीरिक- आत्मिक यानी सभी क्षेत्रों को सुखी बनाने के लिए जो नियम बनाए जाते हैं उन्हें ही धर्म कहते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने उपरोक्त धर्म को ही हिंदू जीवन पद्धति में ढालते हुए भू गगन वायु अग्नि नीर पंच तत्वों को सनातन संस्कृति से जोड़कर हिंदू जीवन पद्धति का अंग बनाया।
जब हम हिंदू जीवन पद्धति की बात करते हैं तो पाते हैं हिंदू का मतलब है जो वसुधैव कुटुंब को मानने वाला हो तथा मानवता का पोषक हो। यह विचार ही हिंदुत्व है, यही हमारी जीवन पद्धति है। हमने आकाश को पिता और धरती को माता कहकर सम्मान दिया है। सूर्य चंद्रमा जल वायु वृक्ष पर्वत सभी को पूजनीय व वंदनीय माना गया है।
आदिकाल से हमने प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन की बात की है। सनातन धर्म में भू गगन वायु अग्नि व नीर पंच तत्वों को ही भगवान माना है। भू+ गगन+ वायु+ अग्नि+ नीर= भगवान। सृष्टि के प्रत्येक राज कण में भगवान का वास माना गया। और केवल माना ही नहीं अपितु उसके पालन-पोषण संवर्धन व संरक्षण को भी हिंदू धर्म से जोडा। हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन अध्ययन किया और हिंदू जीवन पद्धति को धर्म अध्यात्म से जोड़ते हुए सृष्टि के प्रत्येक रज कण के महत्व को जीवन पद्धति बना दिया।
प्रश्न फिर भी है कि हिंदू धर्म व जीवन पद्धति क्या है?
शास्त्रों में कहा गया है "जो धारण करने योग्य हो, वह धर्म है।" धारण करने योग्य क्या है? सर्वप्रथम प्रकृति, मानवता, अतिथि देवो भव: की परंपरा, वसुधैव कुटुंब की कल्पना, सर्वे संतु निरामया की अवधारणा, पशु पक्षियों के प्रति दया भाव ही धारणीय है।
हिंदू जीवन पद्धति में वह सब समाहित किया गया जो श्रेष्ठ है। चूल्हे पर रोटी बनाते समय पहला टुकड़ा अग्नि को, पहली रोटी गाय को, अंतिम रोटी कुत्ते को, तुलसी पीपल बरगद आंवला शमी आदि सभी वृक्षों की पूजा, भूखे को भोजन, गरीबों को दान, पशुओं को चारा, परिंदों को दाना, चींटी को आटा, नदी तालाब, ताल तलैया के आसपास साफ-सफाई व पूजा हमारी जीवन पद्धति है।
अब बात आती है पर्यावरण की, पर्यावरण क्या है?
पर्यावरण का अर्थ परि + आवरण, अर्थात चारों ओर से घिरा हुआ। नदी तालाब पहाड़ मैदान खेत खलियान पेड़-पौधे जीव जंतु सभी हमारे पर्यावरण के घटक हैं। हमारे चारों ओर सौंदर्य फैला है। मन को प्रसन्न करने वाले पेड़ पौधे, रंग-बिरंगे पुष्प, स्वच्छ वायु, निर्मल शीतल जल लहलाती फसलें, गीत गाते परिंदे, रंग बिरंगी तितलियां- कीट पतंगे यह सभी प्रकृति के अद्भुत श्रंगार हैं। लेकिन हम सब यह तब ही देख पाएंगे जब हमारी आत्मा निर्मल होगी, हम प्रकृति मय होंगे।
प्रकृति और मानव के बीच होने वाला यह अटूट संबंध ही पर्यावरण का निर्माण करता है।
प्रकृति मानव और पर्यावरण के साथ समन्वय का पाठ गुरु दत्तात्रेय जी ने प्रकृति संरक्षण के रूप में पढ़ाते हुए इसे पर्यावरण बताया।
हिंदू जीवन पद्धति प्रकृति और पर्यावरण की पोषक है। पर्यावरण का तात्पर्य मात्र वृक्ष या प्रकृति का संरक्षण ही नहीं अपितु वाणी तथा सामाजिक प्रदूषण से बचाओ भी पर्यावरण संरक्षण है। वाणी प्रदूषण, असभ्य संवाद, अमर्यादित आचरण हमारे पारिवारिक व सामाजिक पर्यावरण को दूषित करते हैं। इसलिए प्रदूषण से बचाने के लिए विनम्र होने, मधुर शब्दावली का प्रयोग करने तथा सद्आचरण शास्त्रों में बताई गई। और इसी बात हिंदुत्व जीवन पद्धति तथा पर्यावरण का आधार बनाया गया।
जिस दिन भारतवासी हिंदू जीवन पद्धति का अनुसरण करेंगे, उसी दिन से पर्यावरण की समस्या का समाधान हो जाएगा।
डॉ अ कीर्ति वर्धन
विद्या लक्ष्मी निकेतन
53- महालक्ष्मी एनक्लेव जानसठ रोड मुजफ्फरनगर 251001
मोबाइल 8265821800
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