Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जैसे- जैसे उम्र बढी, अनुभव

 

जैसे- जैसे उम्र बढी, अनुभव बढ़ता जाता है, 

भीतर का चिंतन होता, गुस्सा भी कम आता है। 
नियम, संयम- समझौता, परिवार में सामंजस्य, 
शाम ढले बिस्तर पर, सबका मंथन हो जाता है। 

 धर्म कर्म में बढ़ी आस्था, हित समाज के सोचें, 
खान पान संतुलित, ख्याल स्वास्थ्य का आता है। 
कुछ दायित्व हमारे भी हैं, संस्कारों का रोपण हो, 
संस्कृति का संरक्षण करने, कीर्ति भी जुट जाता है। 

साँस घटे जब अनुभव बढ़ता, जीवन हर पल आगे बढ़ता है, 
जीवन मरण तो होना निश्चित, व्यर्थ कोई सार्थक करता है। 
कोई काटे कट न पाता, लगता व्यर्थ ही जीवन उसका, 
परहित में हों जिसकी सांसें, जीवन उसका प्रेरक बनता है। 

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर २५१००१
८२६५८२१८००

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