Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिनको नही बोध, निज संस्कृति संस्कार का

 

जिनको नही बोध, निज संस्कृति संस्कार का, 

जिनको नही ज्ञान कुछ, विज्ञान के आधार का, 
बाँटते फिरते हैं ज्ञान, वो कुतर्कों को सामने रख, 
जिनको नही भान कुछ, सनातन के विचार का। 

सनातन ने जग को बताया, व्रत का आधार क्या, 
गीता ने सबको सिखाया, कर्म का आधार क्या। 
है नहीं कुछ भी व्यर्थ, वेद पुराण उपनिषद सार, 
धर्म ने हमको बताया, मानवता का आधार क्या? 

व्रत पूजा पाठ सबका, वैज्ञानिक आधार है, 
परिवार को जोड़ने का, व्रत भी आधार है। 
अर्थ व्यवस्था के केन्द्र, सनातनी त्योहार हैं, 
सनातन व्यवस्था में, उपकार ही आधार है। 

जिसको मनाना वह मनाये, जिसको नही बंधन कहाँ, 
कोई पूजे राम सीता, शिव भक्ति पर भी बंधन कहाँ? 
नदी- पर्वत, पेड़- पौधे, सृष्टि के कण- कण में ईश्वर, 
शैव शिव शक्ति के उपासक, विष्णु पूजा बंधन कहाँ? 

कोई रखता व्रत उपवास, कोई रोजे रखता यहाँ, 
सार सबका एक ही है, धर्म की उपासना यहाँ। 
उपवास के आलोचक हजारों, रोजे की प्रेरणा, 
धर्मनिरपेक्ष दोगले करते, धर्म आलोचना यहाँ। 

धर्म का मर्म क्या है, ज्ञानी जनों से पूछिए, 
ज्ञान का आधार भी, धर्माचार्यों से पूछिए। 
अपने धर्म का अनुकरण, सभी धर्मों में बना, 
सनातन पर हमला क्यों, खुद से ये पूछिए? 

जिसको नही गुमां, अपने धर्म जाति- संस्कृति का, 
मरा हुआ वह नीच अधर्मी, शिकार हैं विकृति का। 
मानसिक विक्षिप्त होते, दिवालियापन के शिकार, 
निज धर्म हीन समझें, दूसरे को श्रेष्ठ प्रवृत्ति का। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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