Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खेल है सब दृष्टि और दृष्टिकोण का

 

खेल है सब दृष्टि और दृष्टिकोण का, 

पतझड़ में पत्ता झड़ गया, या गौण का। 
उपयोगी बने टूटकर भी, हमारे हाथ है, 
 ननसृष्टि के सृजन और हमारे मौन का। 

टूटकर भी चाह अपनी, काम हम आ जायेंगें, 
गिर गये गर आँधियों से, खाद हम बन जायेंगे। 
सूख कर यदि झड़ गये, हमको सकेरना कभी, 
जब भी ज़रूरत पडे, हम ख़ुशी से जल जायेंगे। 

योगी बनो उपयोगी या भोगी बनो, 
यह सब हमारे हाथ हमारे साथ है। 
अपेक्षाओं में पलें या निर्लिप्त रहें, 
जल में कमल सौभाग्य की बात है। 

कब तलक रुतबे का रोना रोया जायेगा, 
बैंगन के सिर ताज भरता बनाया जायेगा। 
प्यार से पाला और दायित्व निर्वहन किया, 
बीज हमने जैसा बोया फल वही तो आयेगा। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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