Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्या भगवान बुद्ध का अविर्भाव महाभारत या भगवान कृष्ण से पूर्व हुआ था ?

 

यह तथ्य निर्विवाद रूप से सत्य है कि भगवान बुद्ध का जीवन काल 1807 ईशा पूर्व का निर्धारित है तथा पाणिनि का काल -700-500 पूर्व माना ईसा पूर्व था। निश्चय ही पाणिनि ने अष्टाध्यायी तथा अपने ग्रंथों में बुद्ध , महाभारत व भक्ति- भगवत धर्म का उल्लेख अपने पूर्ववर्ती ग्रंथों एवं श्रुतियों से किया है। प्रशन यह है कि महाभारत का काल बुद्ध के बाद का कैसे हुआ ?

 

इसके लिए इतिहास को खंगालने की आवश्यकता है। एक बात तो यह है कि पाणिनि ने कहीं भी यह नहीं कहा की महाभारत का काल बुद्ध के बाद का है , ऐसा प्रमाण हमें नहीं मिलता है। दूसरी बात महाभारत के एक लाख श्लोकों में कहीं भी बुद्ध का उल्लेख ही नहीं है जबकि महाभारत का उस समय भारत का प्रतिबिम्ब कहा गया था। अगर कहीं महर्षि पाणिनि ने अपने ग्रंथों में “ मस्करी परिव्राजक “ का उल्लेख किया है तो वह कोई का विषय ही नहीं है। बुद्ध का काल तो पाणिनि से भी लगभग 1300 -1200 ईसा पूर्व था। महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी की रचना की , यह संस्कृत व्याकरण का सबसे अधिक सटीक तथा सर्व मान्य ग्रन्थ माना जाता है। जिसके आधार पर सभी बाद के धर्मग्रंथों की रचना की गई। इतना ही नहीं कुछ प्राचीन ग्रंथों को भी पुन: इसी आधार पर संशोधित किया गया।

 

अब ज़रा महाभारत की स्थिति पर भी ध्यान दें। वेद व्यास जी ने एक ग्रन्थ की रचना की , जिसमे एक लाख श्लोक थे। इन एक लाख श्लोकों को 100 पर्वों में बांटा गया था। इस ग्रन्थ का रचना काल 3100 ईसा पूर्व के लगभग माना जाता है। इसका नाम “जय महाकाव्य “ था।

 

वेद व्यास जी के कहने से उनके शिष्य वैशम्पायन जी द्वारा जन्मेजय यज्ञ समारोह में इस जय महाकाव्य को ऋषि - मुनियों को सुनाया गया। तब इसे “ भारत “ के रूप में जाना गया। ( समय लगभग 3000 ईसा पूर्व )

 

इस जय महाकाव्य अथवा भारत को सुत जी द्वारा लगभग 2000 ईसा पूर्व पुन: सुव्यस्थित किया गया तथा 18 पर्वों में बाँटा गया।

 

तत्पश्चात लगभग 1200 इसा पूर्व इस ग्रन्थ को ब्राह्मी या संस्कृत में हस्तलिखित पांडुलिपि के रूप में लिपि बद्ध किया गया। इसके बाद भी अनेक विद्धवानो द्वारा इसमे फेर बदल गये।

 

पुणे स्थित भंडारकर प्राच्य शोध संस्थान ने पुरे दक्षिण एशिया में उपलब्ध महाभारत की लगभग 10000 पांडुलिपियों को खोज कर शोध और अनुसंधान कर सभी में पाए जाने वाले 75000 श्लोकों को खोजा और उनके स टिपण्णी एवं समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित किये। इस सम्पूर्ण सामग्री को अलग अलग खंडो में विभाजित कर 13000 पृष्ठों में समेटा गया है।

 

इसके अलावा जो लोग महाभारत का काल 700 -500 ईसा पूर्व मानते हैं उन्हें छान्दोग्य उपनिषद जो 1000 ईसा पूर्व से भी पहले का है , भी देखना चाहिए। उसमे भी महाभारत का वर्णन मिलता है।

 

अगर वैज्ञानिक आधार की बात करें तो भू वैज्ञानिकों के अनुसार सरस्वती नदी के 5000 -3000 ईसा पुर्व की उपस्थिति का पता चलता है तथा 1900 ईसा पूर्व भू गर्भी परिवर्तनों से इस नदी के सुखाने का आभास मिलता है। जबकि महाभारत में सरस्वती नदी का वर्णन अनेक बार आया है जिससे स्पष्ट है कि महाभारत ईसा से 1900 वर्ष पूर्व का ही है।

 

अब ज्योतिषीय गणना के अनुसार जो महाभारत में ही वर्णित हैं-------

 

१ -विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्य भट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध लगभग 3102 ईसा पूर्व हुआ था।

२ -विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री वराहमिहिर के अनुसार महाभारत युद्ध 2449 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था।

३ -चालुक्य राजवंश के सबसे महान सम्राट पुल्केसी-२ के अनुसार ५वी शताब्दी के ऐहोल अभिलेख में बताया गया है कि महाभारत युद्ध को 3735 वर्ष बीत गए और उसके हिसाब से यह 3100 ईसा पूर्व का समय आता है।

४ -पच्छिमी यूरोपीय विद्धवान पी वी होले महाभारत में वर्णित ग्रह नक्षत्रों की आकाशीय स्थितियों का अध्यन कर इसे 3143 ईसा पूर्व का मानते हैं।

५ -अधिकतर भारतीय विद्धवान श्री बी एन अचर ,एन एस राजाराम ,के सदानंद ,सुभाष काक आदि गृह नक्षत्रों की आकाशीय गणना के आधार पर इसे 3067 ईसा पूर्व मानते हैं।

६ -ताज़ा शोधानुसार ब्रिटेन में कार्यरत न्युक्लिअर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलिय घटनाओं का अध्यन कर बताया कि यह युद्ध 3067 इसा पूर्व हुआ था , उस वक़्त कृष्ण 55 -56 वर्ष के रहे होंगे। इसके कुछ समय बाद ही महाभारत का रचना काल माना जाता है।

७ -कृष्ण का काल द्वापर युग में था। जबकि कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व हो गया था।

इससे पता चलता है कि कृष्ण का काल और महाभारत इसा से कम से कम 3102 वर्ष पूर्व ही था।

८ -डॉ प्रभुदयाल मितल ने छान्दोग्य उपनिषद के श्लोकों ,मैत्रायिनी उपनिषद और शतपथ ब्राह्मण के “ कृतिका स्वादधीत “ उल्लेख से बताया कि तत्कालीन खगोल स्थिति की गणना कर ट्रेनिंग कॉलेज ,पूना के गणितज्ञ प्राध्यापक शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने कृष्ण काल को लगभग ५००० वर्ष पूर्व यानी ईसा से लगभग 3000 वर्ष पहले ही माना है। छान्दोग्य उपनिषद भी इसी काल का माना जाता है उसमे देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख मिलता है। शतपथ ब्राह्मण का काल 2500 ईसा पूर्व का है। उपनिषद का रचना काल भी 2500 -2000 ईसा पूर्व का ही निर्धारित किया गया है।

९ -डॉ मीतल के अनुसार ही “ महाराजा परीक्षित के समय सप्त ऋषि ( आकाश में सात तारे ) मघा नक्षत्र पर थे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मघा नसे प्रारम्भ होकर 27 नक्षत्र होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र पर सप्त ऋषि 100 वर्ष रहते हैं। नक्षत्रों का एक चक्र पूरा कर वर्तमान में सप्त ऋषि कृतिका नक्षत्र पर हैं। जो की 21 वां नक्षत्र है। इस प्रकार 2700 +2100 == 4800 वर्ष पूर्व परीक्षित का काल हुआ। परीक्षित के पितामह अर्जुन थे , जो श्री कृष्ण से 18 वर्ष छोटे थे। इस प्रकार उक्त ज्योतिष गणना के अनुसार कृष्ण का काल अब से 5000 वर्ष पूर्व का सिद्ध होता है।

१० -भारत का सर्वाधिक पुराना युधिष्ठर संवत है। यह कलियुग से 40 वर्ष पूर्व का है। कलियुग का आरम्भ 3176 शक संवत पूर्व है , अब 1887 शक संवत है। यानी कलियुग को प्रारम्भ हुए 5066 वर्ष तथा युधिष्ठर संवत को 5106 वर्ष हो गए हैं।

११ -पुरातात्व्वेक्ताओं का मत है कि अब से 5000 वर्ष पूर्व भयंकर भूकंप और आंधी तूफ़ान से प्रलय जैसी स्थिति आई होगी। इसी प्रकार की घटनाओं का जिक्र महाभारत में मिलता है , जिसमे हस्तिनापुर व द्वारिका के नष्ट होने का उल्लेख मिलता है।

 

 

ऐसे एक दो नहीं अनेक तथ्य हमारे सामने उपलब्ध हैं जिससे सिद्ध होता है कि महाभारत व श्री कृष्ण का काल 3100 ईसा पूर्व के लगभग था जबकि बुद्ध का काल अंतिम शोध मिलाने तक 1807 ईसा पूर्व ही ज्ञात हो सका है।

 

 

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

 

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