Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं चला हूँ वर्जनाओं को पार कर

 

मैं चला हूँ वर्जनाओं को पार कर, 

नई दृष्टि से जगत को निहार कर। 
पुष्प के सौन्दर्य को सराहा सभी ने, 
डालता दृष्टि कंटकों के उपकार पर। 

पुष्प पादप भी मिलते, कुछ मादक यहाँ, 
भक्षण करते जीव का, भ्रमित कर यहाँ। 
कंटक तो बदनाम होते, यूँ ही हैं जगत में, 
सुरक्षा में खेत की लगते, बाड पर यहाँ। 

अच्छाई की तारीफ करते सब जगत में, 
बुराई की निन्दा हेतु, सब तत्पर हैं यहाँ। 
अच्छाई कब अच्छी बनी, कभी विचारिये, 
बुराई की तुलना कर ही कुछ अच्छे यहाँ। 

है दृष्टिकोण यह भी, देखने का आपका, 
किसको महिमा मंडित, सोचने का आपका। 
राम ने निज स्वार्थ में, कब बाली को मारा, 
बाली की पीड़ा पर गया, नहीं ध्यान आपका। 

रात को अन्धकार कह, सबने नकारा, 
सुबह को प्रकाश कह, सबने संवारा।
रात बिन, प्रकाश का भी महत्व कैसा, 
विश्राम के पल रात में, किसने विचारा? 

बुराई से ही, अच्छाई का सम्मान है, 
अच्छों में कौन अच्छा, तुलना आम है। 
सबसे अच्छे के सामने, सब लगते बुरे, 
अच्छा बुरा बस तुलनात्मक आयाम है। 

आओ तलाशें, बुराई में अच्छाई को, 
तोडकर, वर्जनाओं की सच्चाई को। 
सकारात्मक दृष्टिकोण से फिर निहारें, 
नकारात्मक में छिपी, हर बुराई को। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर २५१००१
उत्तर प्रदेश 

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