मरियल सी हो गयी गाय, कोई तो ख्याल करो,
बूढ़ी मां को उचित भोजन, मत तिरस्कार करो।
दूध निकाला छोड़ दिया, सड़कों पर चारा खाने,
कचरा खाती और भटकती, कुछ उपचार करो।
बूढ़ी मां को उचित भोजन, मत तिरस्कार करो।
दूध निकाला छोड़ दिया, सड़कों पर चारा खाने,
कचरा खाती और भटकती, कुछ उपचार करो।
नये दौर में यही खामियां ज्यादा आयी,
जिसने पाला दरवाजे के बाहर ही पायी।
कभी मिली वह वृद्ध आश्रम ठौर खोजते,
कभी भटकती कूड़ा करकट खाती पायी।
है अजब सा हाल, विडम्बना भारी है,
पढ़ा लिखा इंसान, मति ज्यादा मारी है।
ढूंढ रहा सुख सुविधाएं, पत्थर दीवारों में,
स्वयं विनाश की कर रहा, वह तैयारी है।
अ कीर्ति वर्द्धन
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