Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मौन रहकर भी -----

 

मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,

दर्द चेहरे से बयां वो हो रहा है ।

 

 

सोचा था जिऊँगा खुशहाल होकर ,

तनहा जीवन आज बोझिल हो रहा है ।

 

 

उम्र गुजरी सोचा नहीं मैंने कभी कुछ ,

जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है ।

 

 

साथ थे मेरे हजारों हम सफ़र ,

आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है ?

 

 

मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ ,

पतझड़ सा यौवन,उजड़ा सा आँगन हो रहा है ।

 

 

आंसू नहीं बहते मेरी आँख से अब ,

राजे दिल ,कौन फिर खोल रहा है ?

 

 



डॉ अ कीर्तिवर्धन

 

 

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