मायूस होकर ज़िन्दगी कब तक जिओगे,
तिरस्कार सह कर ज़िन्दा कब तक रहोगे?
मान से सम्मान से कुछ पल मिले ज़िन्दगी,
रोज़ रोज़ मरने से बेहतर, कुछ पल जिओगे।
कर रहा अपमान कोई, हाथ उसके काट दो,
पापी हो कोई घर या बाहर, उसको घात दो।
है नहीं हमदर्दी दया मानवता जिसके दिलों में
दुष्ट कोई भी हो धरा पर, उसको मात दे।
बेबसी का जीवन जीना, अच्छा नहीं लगता,
जीते जी मर मर के जीना, सच्चा नहीं लगता।
अश्क बहने लगें किसी की याद में जाने के बाद,
देशहित जीवन लुटा, बच्चा बच्चा नही लगता।
यूँ तो मरते रोज़ लाखों, कौन किसको याद करता,
बात अपनी या परायी, कौन किसकी बात करता?
दर्द का भी दर्द समझकर, मानवता हित जो जिये,
जीते जी और मरने पर भी, जगत उसकी बात करता।
डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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