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Dr. Srimati Tara Singh
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प्रेम

 

प्रेम


 प्रेम में शर्त कहाँ, 
शर्त जहाँ, प्रेम कहाँ? 
प्रेम तो समर्पण है, 
मेरा तेरा सब अर्पण है। 
नहीं भावना कुछ पाने की,
चाह यदि कुछ, प्रेम बंधन है। 
प्रेम दूब सा बढ़ता जाता 
प्रेम विनम्रता अहसास दिलाता। 
प्रेम जानता झुकना कैसे,
आँधी के तलवे सहलाता। 
प्रेम प्राण वायु देता,
पीपल सा गुणकारी होता। 
शीतल जल सा हरदम बहता,
 सारे जग की प्यास बुझाता। 
प्रेम नहीं सागर सा होता, 
सारा जल भीतर भर लेता। 
प्यास नहीं बुझाता प्यासे की 
सारा जल ही खारा होता। 
प्रेम जानता- केवल देना,
प्रेम जानता- बस खुश होना।
 तेरी पीड़ा- मेरी पीड़ा है,
प्रेम जानता द्रवित होना। 

डॉ  अ कीर्ति वर्द्धन
५३ महालक्ष्मी एनक्लेव मुज़फ़्फ़रनगर उ प्र भारत 
८२६५८२१८००

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