ऋतुराज बसंत का आगमन, भर देता उपवन में थिरकन।
तितली भौंरे झूम रहे हैं, पुलकित जन जन का मन आंगन।
पीत पत्र वृक्षों से झर कर, नवसृजन की आस जगा रहे,
ज्ञान की देवी सरस्वती का, बसन्त कर रहा शाश्वत अभिनंदन।
अ कीर्ति वर्द्धन
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