सर्दी
ठंड का यह आलम, तुम क्या जानो गालिब,
भाप मुँह से निकलती, नाक पर जम जाती है।
बह रहा है एक दरिया नाक के रास्ते मुकम्मल,
रजाई से बाहर निकलते ही नानी याद आती है।
ए सी कूलर पंखे, सब बीते दिन की बात हुई,
ठंडा पानी आइस्क्रीम, बीते दिन की बात हुई।
जल रहा हो अलाव सामने, चाय की चुस्की हो,
सुबह सवेरे घूमने जाना, बीते दिन की बात हुई।
सर्दी की मेवा मुँगफली, और रेवड़ी साथ में,
मेवा पिस्ते से अच्छी, गुड़ की डली साथ में।
मक्के की रोटी के संग, साग चने का अच्छा,
दही मट्ठे की बात निराली, मक्खन हों साथ में।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY