Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शिक्षक

 

शिक्षक


विपरीत के बीच भी, जो आस लिए चलता है,
धार के विरुद्ध नदी में, जो नाव लिए चलता है।
मृत्यु के सम्मुख भी, जीवन की आस जगाता है, 
शिक्षक ही है भूखा रह, भोजन की बात बताता है।

कभी कहीं किसी हाल में, नहीं किसी से हारा,
हर निराश टूटे मन का वह, बना सदा सहारा। 
दानव को भी मानव बनना, वह सिखलाता है,
मझधार में भटकी नैया, बन जाता वह किनारा। 

 अ कीर्ति वर्द्धन

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