Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तोडकर पर्वत की कारा

 

तोडकर पर्वत की कारा, मैं निरन्तर बढ़ रहा हूं,
प्यास जन जन की बुझे, चाह में ही बढ़ रहा हूं।
जब गिरूं मैं पर्वतों से, गीत हर पल गाता रहा,
पर्वतों के बीच बढ़ता, हरियाली लाता रहा हूं।

अ कीर्ति वर्द्धन
 

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