Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विविध

 

 

  • जब भी चाहता हूँ कविता लिखना, भाव नहीं आते हैं,
    उथल- पुथल होती है मन में, ठहराव नहीं आते हैं।
    भावों को यदि बाँध ना पाये, कलम- कागज़ की कैद में,
    समन्दर में लहर के मानिन्द, वो ठहर नहीं पाते हैं।

     

  • साफ़ सफाई जीवन का, बना रहे अभियान,

    लक्ष्मी भी विराजें वहीँ, जहां स्वच्छ मुकाम।

    बिमारियाँ आती नहीं, उस बस्ती की ओर,

    मानव जहां कर रहे, स्वच्छता पर अभिमान।

 

 

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