दृष्टि बाधित मित्रों को सादर समर्पित—
बाहर चक्षु बन्द हैं लेकिन घट भीतर चक्षु देख रहे हैं,
नग्न आँख से देख सके ना, अंतरतम तक देख रहे हैं।
चाह जगी जब ईश्वर पाने की, नयन बन्द करके देखा,
अंधकार में चाह उजाला, नयन बन्द कर देख रहे हैं।
प्रभु ने चाहा हमसे, कुछ कार्य विशेष हमें करना,
बाहर चक्षु बन्द किये, पर मन चक्षु सब देख रहे हैं।
एकाग्र किया जब जब मन को, अंतश चक्षु मुखर हुए,
सम्पूर्ण सृष्टि और जगत को, निज भीतर देख रहे हैं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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