Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किसी से अपेक्षा रखना

 
किसी से अपेक्षा रखना, अब अच्छा नही लगता,
कोई उपेक्षा करे यह भी, अब अच्छा नहीं लगता।
उम्र भर यहां जीये, हम निज मान और सम्मान से,
कोई हमारा अपमान करे, अब अच्छा नहीं लगता।

बच्चे हमारा ख्याल रखते, यह अच्छा लगता है,
कर्तव्य का निर्वहन करते, यह अच्छा लगता है।
कुछ दायित्व अपना भी, मुक्त गगन उन्हें मिले,
गगन के छोर उडता देख, यह अच्छा लगता है।

आत्मनिर्भर हम बनें, जब तक तन में जान है,
स्वाभिमानी भी बनें, जब तक तन में प्राण हैं।
स्वस्थ रहे तन मन अपना, सादगी अपनाइये,
मन तब सुखी रहे,  जब तक तन में ध्यान है।

ध्यान से मन शांत हो, करे प्रभु की साधना,
व्यायाम से तन बने, करें  प्रभु की आराधना।
उदार चित्त जीवन का लक्ष्य, बस उपकार हो,
हर पल मेरा हाथ थामे, उस प्रभु की कामना।

हम बनें सामर्थ्यवान, उम्र के हर दौर में,
किसी काम आ सकें, उम्र के हर दौर में।
बहुत मिला समाज से, कुछ हम लौटा सकें,
बस यही कामना हमारी, उम्र के हर दौर में।

अ कीर्ति वर्द्धन
53 महालक्ष्मी एनक्लेव मुज़फ़्फ़रनगर भारत 

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