आज नहीं तो कल निखरेगा,
जीवन का हर पल निखरेगा।
फैल रहा जग में प्रदूषण,
जाग गये तो सब सुधरेगा।
सत्य का परचम फहरा तो,
झूठ पुलिंदा तृण तृण बिखरेगा।
ज़ख़्मों पर ममता की मरहम,
जमा दर्द भी जल्द पिंघलेगा।
नहीं काम का खोटा सिक्का,
रखो जेब में वह खनकेगा।
दुनिया के ताने तो सह लें,
अपनों का ताना अखरेगा।
मेहनत से संतुष्टि मिलती,
श्रम बिन्दु चेहरे पर चमकेगा।
सकारात्मक जब भी सोचो,
आत्मविश्वास भीतर उपजेगा।
मानवता की बात करोगे,
दया धर्म दिल से उभरेगा।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर २५१००१
८२६५८२१८००
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