आज विश्व कविता दिवस पर
सीधी सच्ची परिभाषा यह कविता की,
मानवता की बात बताती कविता की।
कभी आँख से आँसू निकले दुश्मन के,
जख्मों पर भी लेप लगाती कविता की।
ज्ञान धर्म अध्यात्म, समाहित सब इसमें,
प्यार समर्पण सन्देश सुनाती कविता की।
गुस्सा नफरत अहंकार भी इसमें मिलता,
बंजर में भी फूलों की क्षमता, कविता की।
सुन कर जिस कविता से भुजाएँ फड़क उठें,
राणा शिवा लक्ष्मी, गौरव गाथा कविता की।
रामायणमें लिखा रचा जो, वह कविता है,
वेद पुराण गीता गाथा, परिभाषा कविता की।
सृष्टि और ब्रह्माण्ड में, जो रचा बसा दिखता,
गंगा की कलकल झरनों का संगीत कविता की।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर २५१००१
उत्तर प्रदेश 
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY