Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहुत ख़ूब बयां किया, क़िस्सा ऐ काग़ज़

 

बहुत ख़ूब बयां किया, क़िस्सा ऐ काग़ज़, 

क़िस्सा ए इश्क़, दर्द की आवाज़ कागज। 
व्यथा काग़ज़ की तो जमाने को बता डाली, 
कहो कुछ बात उसकी, जिससे बना काग़ज़। 

हुआ पर्यावरण प्रभावित, कटे वृक्ष हज़ारों जब, 
बदला मिज़ाज मौसम का, जंगल नदारद जब। 
करा विकास मानव ने, मगर क़ीमत बड़ी चुकाई, 
मृत्यु खुद की लिखी, बना लकड़ी से काग़ज़ जब। 

गीत ग़ज़ल नज़्म, काग़ज़ पर लिख डाली, 
इश्क़ प्यार मोहब्बत, दास्तां लिख डाली। 
इतिहास के क़िस्से भी सिमटे काग़ज़ पर ही, 
नफ़रत अदावत की कहानी भी लिख डाली। 

जब तलक काम का, काग़ज़ सँभाल कर रखा, 
वसीयत का कागज, तिजोरी में ध्यान से रखा। 
महबूब के ख़त आज भी, धरोहर बन सुरक्षित, 
काम ख़त्म होते ही काग़ज़, कूड़ेदान में रखा। 

काग़ज़ के दर्द को भी कभी सोचकर देखो, 
आशिक़ों ने लबों से चूमे, यूँ सोचकर देखो। 
वसीयत के काग़ज़ तो सब पर ही भारी रहे, 
शिक्षा के प्रमाण पत्र, महत्व सोचकर देखो। 

 अ कीर्ति वर्द्धन

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