बातों का सिलसिला बनाये रखता हूँ,
कुछ सुनता हूँ, कुछ सुनाये रखता हूँ।
बाँट लेता हूँ सुख दुःख, यूँ कहते सुनते,
मुस्करा कर रिश्तों को बचाये रखता हूँ।
मौन रह कर आरोप सुन लेता हूँ,
मौन लबों से कुछ जवाब देता हूँ।
मुखर होते हैं कभी-कभी शब्द भी,
मुखरता में विनम्रता ढाल लेता हूँ।
है बहुत कठिन रिश्तों को बचाना,
शेर और बकरी, एक घाट लाना।
जानता हूँ यह चुनौती बहुत बड़ी,
संयम की चाबी मूल रिश्ते बचाना।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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