Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाहा लिख दूँ बात तुम्हें कुछ

 

चाहा लिख दूँ बात तुम्हें कुछ, सीधी साधी सच्ची सी, 

सुन्दर मुखड़ा सरल सी बातें, करती हो तुम बच्ची सी। 
मधुर मधुर मुस्कान लबों पर, अपनापन जिसमें होता, 
शब्दों से अठखेली करती, लिखती कविता अच्छी सी। 

तुमसे ही घर में ख़ुशियाँ, तुम संस्कारों का सार हो,
परिवार की नींव जहाँ पर, तुम उसका आधार हो। 
धर्म- कर्म और मानवता, रिश्तों का संसार तुम्हीं से, 
विभिन्न विचार व्यवहार बीच, तुम विश्वास प्यार हो। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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