Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ढलती हुयी जिंदगी

 

ढलती हुयी जिंदगी को नया नाम दे दो,
बुढ़ापे को तजुर्बे से नयी पहचान दे दो।
कुछ हँस कर जीते हैं, कुछ रो कर मरते,
खुश रहो, जिंदगी को नया मुकाम दे दो।

अवसर मिला खुद की खातिर जी सकें,
काम जो कर न सके थे, सब कर सकें।
समाज हित उपयोगी बनें, सेवा में लगें,
तीर्थाटन- धर्म- कर्म, सत्संग कर सकें।

मोह माया से चित्त को विरक्त करें,
दया धर्म मानवता, हृदय सिक्त करें।
दायित्वों का निर्वहन, बच्चों को सौंप,
अनावश्यक बोझ, स्वयं को रिक्त करें।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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