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दीजिए मत मौक़ा कहीं, खेलने का जज़्बात से,

 

Sushil Kumar 

Tue, Sep 5, 12:21 PM (17 hours ago)




to Sushil, bcc: me 







दीजिए मत मौक़ा कहीं, खेलने का जज़्बात से,

है नहीं हिम्मत किसी की, खेले जो ख्यालात से। 
खुद की मंज़िल रास्ते, नित नये लक्ष्य बनाकर, 
आगे बढ़ो बढ़ते रहो, कभी डरना नहीं हालात से। 

 क्यों रहें आश्रित किसी के, जब तक तन में जान है, 
निज कमाई रूखी रोटी, जिस पर हमें अभिमान है। 
हैं बहुत लक्ष्य बड़े परन्तु, छोटों से भी ख़ुश बहुत हूँ, 
बाधायें पथ में मिली, उपलब्धियों पर अभिमान है। 

अ कीर्ति वर्द्धन

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