इंसान बन कर तलाशोगे, तो इंसान मिलेंगे,
गौर से देखना आपातकाल में, इंसान मिलेंगे।
नहीं ज़रूरत दिखावे की, न साधनों का रोना,
इंसानियत की खातिर मिटते, इंसान मिलेंगे।
अपनी रोटी ज़रूरतमंदों में बाँट देते हैं,
बाढ़ भूकम्प, खुद को दाँव लगा देते हैं।
बिना स्वार्थ, सुख दुःख में काम आते,
इनसानियत की पहचान करा देते हैं।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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