Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जो कहते सठियाये हमको

 

जो कहते सठियाये हमको, खुद ही सठियाये हैं, 

हमको सनकी कहने वाले, झूठ में ही इतराये हैं। 
बाल उड़े- कुछ श्वेत, मान लो बढा तजुर्बा अपना, 
बढती अपनी इज्जत से, कुछ जाहिल घबराये हैं। 

 कुछ गलती हमने की होंगी, जीवन की तरुणाई में, 
ग़लत राह भी क़दम बढ़े हों, शायद उस तरुणाई में। 
उम्र बढ़ी- दायित्वों के संग, अनुभव बहुत अपार हुये, 
सीख साख कर विगत से हमने, नयी राह अपनाई है। 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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