Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ की चिन्ता

 

माँ की चिन्ता फ़िक्र दवा की,

आमदनी कम खर्च सवा की।
भरी दोपहरी धूप में चलता, 
नहीं चिन्ता उसे गर्म हवा की।

पत्नी की साड़ी आ जाये,
स्कूल की फ़ीस सताये।
अपना कॉलर भले फटा है,
बच्चों के कपड़े सिलवाये।

बढ़ी आमदनी खर्चे बढ़ गये,
अब तो पाँव पिता के थक गये।
बिटिया भी अब हुयी सयानी,
पर खुद के तो कन्धे ढल गये।

घर में सबको फ़िक्र है खुद की,
ज़रूरत सबकी पूरी हो खुद की।
कब सोना उसे- जाना काम पर,
ज़िम्मेदारी उसकी सब खुद की।

कभी-कभी भूखा सो जाता,
खाकर आया यह बतलाता।
चिंताओं के अथाह समुद्र में, 
सब ठीक है यह जतलाता।

जाने किस मिट्टी का बन जाता,
पिता बना निज सुख खो जाता।
ज़िम्मेदारी जब सिर पर आती,
तब अपना गम हल्का हो जाता।

सबकी ख़ुशियों में ख़ुश होता,
रोना हो तो छिप छिपकर रोता।
जिनकी ख़ातिर खपा रात दिन,
सब चले गये वह तन्हा सोता।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
53  महालक्ष्मी एनक्लेव 
मुज़फ़्फ़रनगर उत्तर प्रदेश 
8265821800

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