नजरिये की बात है
रिश्ते बनाना एक बात है
और निभाना अलग बात है।
ताना बाना बुनकर ही
रिश्ते निभाना पड़ता है।
एक ने खाना बनाया
दूसरा भी तो धूप छाँव में
भूखा प्यासा कष्ट उठाकर
अर्थ कमाकर लाया।
यह गाड़ी के दो पहिए
ऊँचे नीचे चलते रहते।
ससुराल से कफ़न मँगाना
नहीं गरीबी को दर्शाता है
मौन हो रहे सम्बंधों को
नया एहसास दिलाता है।
उनके घर से भी आता है
मेरे घर से भी जाता है
आवा- जाही मिलने जुलने से
जीवन में रिश्ता बच जाता है।
विवाह हुआ बेटे बेटी का
मामा भात भरण आते,
बहन भाई का प्यार अनूठा,
आकर यह बतलाया जाता है।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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