Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गर एक सा मौसम

 

गर एक सा मौसम रहेगा, न कभी बरसात होगी, 

ग्रीष्म ऋतु भी न रहेगी, शिशिर की न रात होगी, 
तब बता मुझको सखी, बसंत की कब बात होगी? 

 कब मिलेंगे आम लीची, कब दूसरे फल आयेंगे, 
फूल भाँति भाँति के, कब उपवन में खिल पायेंगे? 
तब बता मुझको सखी, कब भौंरे तितली आयेंगे? 

 बच्चे नहीं होंगे घरों में, आँगन सूने रह जायेंगे, 
दादा दादी नाना नानी, किस पर प्यार लुटायेंगे? 
तब बता मुझको सखी, रिश्ते कहाँ बच पायेंगे? 

 वृक्ष धरा से कट जायेंगे, उपवन सूने हो जायेंगे, 
कंकरीट के जंगल बचेंगे, पक्षी ग़ायब हो जायेंगे। 
तब बता मुझको सखी, कलकल कहाँ सुन पायेंगे? 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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