आस पास के तराशे हुये अनुभव —————————————- (डॉ अ कीर्ति वर्द्धन)
समीक्षा- हिरोशिमा की आग
आदिकाल से वेदों की उत्पत्ति के पश्चात पुराणों व उपनिषदों में वेदों का सार समझाने के लिए छोटे छोटे संदर्भों का सहारा लिया जाता रहा है। कालान्तर में जातक कथाएँ, पंचतंत्र की कहानियाँ, हितोपदेश, तोता मैना के क़िस्से, विक्रम बेताल, तेनाली राम, दादी नानी की कहानियाँ आदि वाचक परम्परा से शुरू विपुल साहित्य को ध्यान से देखा और समझा जाये तो यह सब लघु कथाएँ ही तो हैं जो अपनी सरल त्वरित प्रभावशाली पहुँच से पाठक मन पर प्रभाव डालती हैं।
लघुकथा के प्रारंभ का इतिहास तो पता नहीं परन्तु हमारे हिसाब से तो वैदिक काल और वर्तमान साहित्यकारों के अनुसार १९०१ से माधव सप्रे जी की कहानी “एक टोकरी भर मिट्टी” के प्रथम लघु कथा माना गया है। लघुकथा सदैव से ही जनमानस के मध्य प्रचलित रही हैं। दन्त कथाओं के माध्यम से चलते चलते वर्तमान में साहित्यकारों द्वारा लघुकथा के विभिन्न प्रकार निर्धारित कर दिए गये हैं। जिनके बारे में चर्चा करना केवल बौद्धिक मंथन करने का प्रयास होगा।
यहाँ हम चर्चा कर रहे हैं श्री रामजी राय के लघु कथा संग्रह “हिरोशिमा की आग” की। हिन्दी लघु कथा साहित्य में स्वतंत्रता के पूर्व और बाद में जो भी रचनाकार हैं उनमें श्री रामजी राय का भी विशिष्ट स्थान है। आपके पूर्व प्रकाशित लघुकथा संग्रह प्रश्न चिन्ह, कल्पवास, तथा धर्म क्षेत्र् कुरूक्षेत्रे काफ़ी चर्चित रहे हैं।
श्री रामजी राय बी आर ए बिहार विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर हैं। आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिरोशिमा की आग इस संग्रह की पहली लघु कथा है। जिसमें मानववृति पर प्रश्न उठाते हुए आदिम मानव के मन में पलती हिंसक वृत्ति से जोड़ा है।
सच ही तो कहा है—“प्रतिहिंसा की जिस आग में उसने पहला पत्थर फैंका था, उसी आग ने आज हिरोशिमा को जलाकर रख दिया।”
शायद यही लघु कथा के सशक्त होने के हस्ताक्षर भी हैं कि वह प्रतीक के माध्यम से कहीं बात से अन्तरमन तक खँगालने की सामर्थ्य रखती है। अन्ध विश्वास पर प्रहार करती बिल्ली और कुत्ते के संवाद माध्यम से आदमी को सचेत करती “आदमी”प्रेरक लघु कथा है।
यद्यपि वास्तविकता तो यह है कि बिल्ली का रास्ता काटना अपशगुन नहीं अपितु बिल्ली की चपलता के कारण अचानक होने वाली दुर्घटना से बचाव के लिए यह प्रतीक गढ़े गये हैं।
अपने आसपास के अनुभवों को शब्दों में तराश कर लघु कथा के रूप में पाठकों के सम्मुख प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना श्री रामजी राय जी विशिष्ट शैली है जिससे पाठक स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है और कथा को स्वयं साक्षी मान कर पढ़ता व अनुसरण करता है।
एक अन्य लघु कथा “चरित्र” से रामजी राय की रचनाओं की गम्भीरता सरलता तरलता एवं दार्शनिकता का अन्दाज़ लगाया जा सकता है-
कौन हो तुम?
मैं चरित्र हूँ।
तुम्हारे हाथ में वह बैग कैसा है?
एक युवक का एक्सिडैंट हो गया था।
बीच सडक पर बेचारा मरा पड़ा था
और उसकी बग़ल में यह बैग लावारिस पड़ा था।
सो मैंने उठा लिया।
सोचा अब तो यह उसके काम का रहा नही,
शायद यह मेरे ही काम आ जाये।
इस कहानी के माध्यम से श्री राय ने लघु कथा शैली, कहानी की व्यापकता, न्यूनता में अधिकतम सामर्थ्य का आभास करा दिया।
प्रस्तुत संग्रह में सीता- नारी मुक्ति मोर्चा की अदालत में, सबसे लम्बी लघु कथा है। जबकि अपराध बोध, शंबूक वध, सभ्य समाज, हार्स ट्रेडिंग, संवेदना के रंग आदि कहानियाँ गागर में सागर का प्रतिनिधित्व करती हैं। और हमें यह भी लगता है कि यही कहानियाँ लघुकथा की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कहानियाँ हैं जिनमें कथानक, कथ्य, शिल्प तथा सरलता तरलता पाठक मन पर प्रभाव सब करने की क्षमता है।
पाठकों और लघुकथाओं के मध्य अधिक विद्वान बनने का प्रयास कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि पाठक से बेहतर समीक्षक कोई नहीं होता और यह भी कि लेखक/ रचनाकार जिन परिस्थितियों व मानसिक धरातल पर सृजन करता है वहाँ तक पहुँचना किसी भी समीक्षक के लिए संभव नहीं हो सकता।
पाठक के दृष्टिकोण से संक्षेप में अगर कहें तो हिरोशिमा की आग की सभी लघु कथाएँ सशक्त और प्रभाव छोड़ने वाली हैं। रामजी राय विध्वंसंस के विरुद्ध हैं। वें प्रकृति का सौन्दर्य बनाये रखने के पक्षधर हैं। सभी जीवों रे प्रति उनके मन में संवेदन है। इन्हीं संवेदनाओं की लदह से भारतीय समाज विश्व में अपनी उपयोगिता व स्थान बनाये रख सका है। आधुनिकता की आपाधापी में हमारे संस्कार पीछे छूट रहे हैं। हिरोशिमा की आग संग्रह में उन्हीं छूटते संस्कारों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।
प्रभु से कामना है कि श्री राय की लेखनी अनवरत चलते हुए पाठकों व समाज का मार्गदर्शन करती रहे।
कुछ चुनिंदा लघु कथाएँ जिन्हें अणु कथाएँ भी कहा जा सकता है को पाठ्यक्रम में जगह मिल सके तो यह अनेक विद्वानों को भी अचरज में डाल सकती हैं।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें।
पुस्तक— हिरोशिमा की आग
लेखक —श्री रामजी राय
प्रकाशक- अभिधा प्रकाशन मुजफ्फरपुर
बिहार मूल्य —२००/-
समीक्षक- डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
निवास- ५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर २५१००१ उत्तर प्रदेश
मोबाइल- ८२६५८२१८००डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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