Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जाने कितनी बार, तेरी गलियों से गुजरे हैं

 

जाने कितनी बार, तेरी गलियों से गुजरे हैं, 

होगा कभी दीदार, तेरी गलियों से गुजरे हैं। 
कभी झरोखे या खिड़की से हमको देखोगी, 
इसी सोच के साथ, तेरी गलियों से गुजरे हैं। 

 कल की लगती बात, मिले थे हम दोनों, 
बरस बीत गये पचास, मिले थे हम दोनों। 
कभी कभी तो, उस बगिया भी जाते हम, 
वो पूनम की थी रात, मिले थे हम दोनों। 

जाने कैसी हवा चली, हम बिछुड़ गये, 
उम्र बीत गयी, दरश को भी तरस गये। 
नहीं भुला पाये तुमको हम ख़्यालों में भी, 
याद तुम्हारी जब आई, नयन बरस गये। 

जाने कितनी बार, तेरी गलियों से गुजरे हैं, 

होगा कभी दीदार, तेरी गलियों से गुजरे हैं। 
कभी झरोखे या खिड़की से हमको देखोगी, 
इसी सोच के साथ, तेरी गलियों से गुजरे हैं। 

 कल की लगती बात, मिले थे हम दोनों, 
बरस बीत गये पचास, मिले थे हम दोनों। 
कभी कभी तो, उस बगिया भी जाते हम, 
वो पूनम की थी रात, मिले थे हम दोनों। 

जाने कैसी हवा चली, हम बिछुड़ गये, 
उम्र बीत गयी, दरश को भी तरस गये। 
नहीं भुला पाये तुमको हम ख़्यालों में भी, 
याद तुम्हारी जब आई, नयन बरस गये। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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