Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रत्येक पल आपसे ही है

 

प्रत्येक पल आपसे ही है, हमको इसका भान सदा, 

जीवन की बुनियाद आपसे, इसका भी है ध्यान सदा।
सर्व समर्थ नारी सदा से, पर खुद से कुंठित रहती है, 
पुरुषों का इतिहास देख लो, रखा इनका मान सदा। 

 नारी के चिंतन में देखा, पुरुषों का अपमान सदा, 
 बस अपना राग सुनाना, पुरुषों की अपमान सदा।
 पिता पति भाई बेटा भी, सब पुरुष वर्ग में आते हैं, 
 जिनके काँधे आगे बढ़ती, पुरुषों का अपमान सदा।

मैं उत्तम हूँ सर्वोत्तम हूँ, इसी भ्रम में जीतीं हैं, 
पति सदा दोयम होता, इसी भ्रम में जीती हैं। 
सुन्दर- गुणवान बहुत, इसका हमको भान है, 
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू, इसी भ्रम में जीती हैं। 

 हर अवसर पर पुरुषों ने, नारी का गुणगान किया, 
पूजा पाठ धर्म कर्म, सर्वप्रथम नारी का नाम लिया। 
फटी क़मीज़ भूखा पेट, पर घर की चिन्ता में जीता, 
संस्कारित परिवार बना तो, नारी को सम्मान दिया। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन

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