आज बाल दिवस है जिसे देश के सारे बड़े लोग मना रहे हैं, और बच्चे वह तो सदा की तरह हासिये पर ही हैं --
एक रचना उन नन्हे बच्चों के लिए जिनके लिए शिक्षा मतलब दादी की कहानी ही है ----
चलो चाँद पर नील गगन में, सारे बच्चे मिलकर,
माँ कहती वह मामा का घर, खेलेंगे सब मिलकर।
नानी भी तो वहाँ बैठकर, चरखा काता करती,
रुई से बादल की चादर, बुनती सूत कातकर।
मामा को लगती है सर्दी, जब निकला करते रातों में,
उसी ऊन का बना झिंगोला, चलते रात पहरकर।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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