गरीबी को भी ओढ़ना और बिछाना जानता हूँ
भूख से व्याकुल भले ही, मुस्कुराना जानता हूँ।
अभावों में भी सन्तुष्टि, लक्ष्य जीवन का रहा,
झोपड़ी में बच्चों संग, महल का सुख जानता हूँ।
हैं बहुत तन्हां महल, सब रहें अलग अलग,
बच्चों से हो बात कैसे, दर्द महल का जानता हूँ।
अर्थ को समर्थ समझते, व्यर्थ जीवन जी रहे,
असमर्थ रहकर भी जीवन, सार्थकता जानता हूँ।
अ कीर्ति वर्द्धन
भूख से व्याकुल भले ही, मुस्कुराना जानता हूँ।
अभावों में भी सन्तुष्टि, लक्ष्य जीवन का रहा,
झोपड़ी में बच्चों संग, महल का सुख जानता हूँ।
हैं बहुत तन्हां महल, सब रहें अलग अलग,
बच्चों से हो बात कैसे, दर्द महल का जानता हूँ।
अर्थ को समर्थ समझते, व्यर्थ जीवन जी रहे,
असमर्थ रहकर भी जीवन, सार्थकता जानता हूँ।
अ कीर्ति वर्द्धन
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