नव वर्ष का इतिहास
नव वर्ष 2022 दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। परन्तु जिस नव वर्ष को हम सब इतनी धूमधाम से मनाने की तयारी कर रहे हैं, उसका इतिहास क्या है, उसका वैज्ञानिक आधार क्या है? इस आलेख में हमने यही बताने का प्रयास किया है। आपसे अनुरोध है कि इस अवसर पर एक बार इस आलेख को अवश्य पढ़ें तथा अपने मित्रों के साथ शेयर करें ------
नव वर्ष यानि अंग्रेजी नववर्ष का इतिहास -----
नव वर्ष की बात.....
दीप जलें, तमस टले, प्रकाश का आगमन हो,
खुशियाँ हों, शुभ सन्देश मिलें, नूतन वर्ष सनातन हो।
जी हाँ यही अवधारणा है भारतीय नववर्ष की।
लेकिन जिस अंग्रेजी नव वर्ष को सम्पूर्ण विश्व धूमधाम से मना रहा है और भारतीय भी अंधे होकर उसकी जय कर कर रहे हैं क्या आप उसका इतिहास जानते हैं?
क्या है ग्रेगरियन कलेंडर आओ जाने......
सबसे पहले रोमन सम्राट रोमुलस ऩे अपने राज्य की काल गणना के लिए कलेंडर बनाया जिसमे सिर्फ 10 महीने थे। जनवरी व फरवरी उसमे नहीं थे। यानी पहला महीना मार्च था जो भारतीय काल गणना के मुताबिक ही था। बाद मे सम्राट पोम्पिलस ऩे जनवरी और फरवरी को उसमे जोड़ा और यह दोनों दिसंबर के बाद यानि 11वां वह 12वां महीना बने।
बाद मे जुलियस सीज़र जब जनवरी महीने मे सम्राट बना तो उसने जनवरी को ही पहला महीना घोषित कर दिया और दिसंबर को 12वां | प्रारंभ मे कलेंडर का 5वां महीना क्वितिलस था फिर यह 7वां महीना बन गया। इसी महीने मे जुलिअस सीज़र का जन्म दिन था तो क्वितिलस का नाम बदल कर जुलाई कर दिया गया।
जुलिअस सीज़र के बाद ईसा से 37 वर्ष पूर्व ओक्टेबियन रोम का सम्राट बना। उसके अच्छे कार्यों के लिए उसे इपेरेटर तथा आगस्टस की उपाधि प्रदान की गयी। जिसका अर्थ मुखिया तथा पवित्र होता है। अब तक वर्ष के 8वें महीने का नाम सैविस्तालिस था। अब इसे बदल कर आगस्टस ओक्तेवियाँ के नाम पर अगस्त कर दिया गया।
एक और मजेदार बात अब तक 8वें महीने मे 30 दिन होते थे और 7वे महीने मे 31 दिन। क्योंकि 7वा महीना जुलिअस सीज़र के नाम था और उसमे 31दिन और वर्तमान राजा के नाम पर 30 दिन, इसलिए फरवरी के 29 दिन मे से 1 दिन काट कर अगस्त मे जोड़ दिया गया। अब आप बताएं क्या आधार है इस अंग्रेजी कलेंडर का?
कुछ और भी मजेदार बातें जान ले.....
.मार्च ...युद्ध और शान्ति के रोमन देवता मार्तियुस से बना। इसीलिए इसे पहला महीना माना गया था।
अप्रैल ...रोमन शब्द अप्रिलिस से बना। यह रोमन देवी अक्रिरिते के नाम पर है।
मई.....बसंत की देवी मेईया के नाम पर है।
जून ..रोमन स्वर्ग की देवी व देवराज जीयस के पत्नी जूनो के नाम पर।
जुलाई....हमने पहले ही बताया जुलिअस सम्राट के नाम पर।
अगस्त...यह भी ऊपर लिख चुके हैं सम्राट के नाम पर।
एक मजेदार बात और भी देखें....
सितम्बर..यह सेप्टेम शब्द से बना जिसका अर्थ होता है सातवाँ, और यह पहले 7वा महीना ही था। जिसे बाद मे 9वा बना दिया गया।
अक्टूबर ..यह ओक्टोवर शब्द से बना। जिसका अर्थ आठ होता है। यह भी पहले 8वा महिना ही था।
नवम्बर... यह नोवज़ शब्द से बना और इसका अर्थ भी नौ ही है। बाद मे इसे 11वा महीना बना दिया गया।
दिसंबर ..यह लातिन शब्द दसम अर्थात दसवां से बना है। और पहले 10वा ही था।
जनवरी..जो पहले 11वा महीना था, रोमन देवता जानुस के नाम पर जैनरियुस शब्द से बना।
फरवरी...लेटिन के फैबु और एरियास का रूप है, जिसका अर्थ शुद्ध करना है। रोमन सभ्यता मे इस महीने को आत्म शुद्धी तथा प्रायश्चित का महीना मानते थे।
इतना ही नहीं सन 1752 मे 2 तारीख के बाद सीधे 14 तारीख का प्रावधान कर इस कलेंडर को संसोधित किया गया। सितम्बर 1752 मे इस कलेंडर मे मात्र 19 दिन ही थे।
भारत मे इस कलेंडर की शुरुआत अंग्रेजों के कार्यकाल में लागू किया गया।
न परिंदों में कोई आहट, न फसलों की कहीं आमद,
न मौसम में ही कुछ बदला, ये कैसा साल है बदला?
न इन्सानी बढे रिश्ते, न मानवता कहीं तडफी,
नही इन्सां कहीं बदला, ये कैसा साल है बदला?
न सूरज में बढी गर्मी, न सर्दी में कहीं नरमी,
न कोहरे ने ही रंग बदला, ये कैसा साल है बदला?
न पेडों से झडे पत्ते, बसन्त अब तक नही आया,
न फसलों का ही रंग बदला, ये कैसा साल है बदला?
दिन भी वही, तारीख वही, महीने भी वही रहते,
समय भी तो नही बदला, ये कैसा साल है बदला?
हमारा मानना है कि अंग्रेजी नववर्ष में केवल तारीख बदलती है, प्रकृति में बदलाव नहीं होता है----तो अंग्रेज़ी नववर्ष पर उत्सव क्यों?
साल ही तो बदला है, आफत तो नही आयी,
सर्दी तो वही है 'कीर्ति', गर्मी तो नही आयी।
न बदले हैं दिन महीने, न परिंदों की उडान,
बदलाव नही कुदरत में, आजादी तो नही पायी।
दीजिए शुभकामनायें, और दुआ भी कीजिये,
जश्न का माहौल कैसा, नयी फसलें तो नही आयी।
चाहा था मनायेँ हम भी, नये साल का जश्न यारों
बसन्त भी नही आया, खुशियाँ भी नही आयी।
डॉ अ कीर्ति वर्धन
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