Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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*साहित्य साधना और व्यक्तित्व*

 
*डॉ.अ.कीर्तिवर्द्धन*
*साहित्य साधना और व्यक्तित्व*

मैं डॉ.वसुधा पु कामत *छवि* आज एक छोटी सी गुस्ताखी हमने की हैं । हमने पितातुल्य   *डॉ.अ.कीर्तिवर्द्ध* जी ने *साहित्य साधना और व्यक्तित्व* पुस्तक हमें डाक द्वारा भेजी थी। उसपर समीक्षा करने की चेष्टा की हैं।*डॉ.अ.कीर्तिवर्द्धन* जी से हमारी मुलाकात हमारे ही वाह्टस्एप कार्यक्रम में हुई थी। उस समय हमारे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रुप मे आये थे और हमारा अहोभाग्य रहा कि हमने इनका परिचय दिया था और उस समय  हम अपने आपको गौरवान्वित समझ रहे थे। वे एक सहज वृत्ति के व्यक्ति हैं यह हमने जान लिया।
आज मुझे *साहित्य साधना और व्यक्तित्व* यह पुस्तिका मिली तो मेरे खुशी का कोई अंत नहीं रहा। उसे खोल कर पलट पलट कर देख रही थी। फिर मेरी नजर अनुक्रमणिका पर गयी और मैंने अनुक्रमणिका में *अक्षर कीर्ति* में निष्णात आस्था का प्रतिस्वर, मनुष्यता को समर्पित भावनाएं, अमृत अक्षय निधि, सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार, बहुमुखी बहुमुखी प्रतिभा के धनी, हिंदू राष्ट्र भारत साहित्य के प्रकाश स्तंभ, मानव हित के विचार, बाल मनोविज्ञान का समुच्चय, यह सारे विषय में मुझे उनके मन, स्वभाव विचार, उनके कृतित्व का वर्णन पढ़ने को मिला। अनेक लेखकों ने बहुत सुंदर-सहज-सरल शब्दों में वर्णन किया हैं। कईयों ने तो आदरणीय डॉक्टर कीर्तिवर्धन जी के स्नेह और उनके साथ रहने से किस तरह मन प्रसन्न हो जाता हैं इसका उल्लेख भी बहुत सुंदर शब्दो में किया हैं। वे हमेशा सबके लिए प्रेरणादाई रहे हैं, सबका उत्साह भरते हैं हर कठिन परिस्थितियों में वे मदद के लिए तत्पर रहते हैं।
इस तरह अनेक तरह के उनके चाहने- माननेवालों के विचार पढ़कर मन गदगद हो रहा था और पुस्तक नीचे रखने का मन ही नहीं होता था। मानों मुझे एक हीरा ही मिला हो ऐसा आभास बार-बार हो रहा था। इस पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते मेरी रोचकता बढ़ती ही गई। मैं पढ़ते-पढ़ते वैभव वर्द्धन जी के *Father : more than a word* और आदरणीय राजेश गर्ग जी की *Always has time for others* बहुत ही heart touching याने हृदय स्पर्शी हैं । वैभव वर्द्धन जी ने शुरुआत में ही लिखा हैं, A word which depicts feelings feelings of love optimism inspiration security braveness and many others. A child looks to his father as a man who will make his dreams come true and will save him from all the troubles in the world.
आदरणीय वैभव वर्द्धन जी ने अपने और अपने पिता के प्रति याने *डॉ अ. कीर्तिवर्धन जी के प्रति विचार रखे हैं सच में हृदयस्पर्शी एवं पढ़ते-पढ़ते आंखें भी नम हो जाती हैं। वे कहते हैं , मैं वैसा तो नहीं बन सका जैसे मेरे पिता चाहते थे पर मेरे लिए वह एक प्रेरणा स्रोत हैं। सच में हर बच्चों के लिए उनके पिता प्रेरणा स्रोत होते हैं। आगे यह भी कहा कि, मेरे पिता के विचार कभी-कभी जुड़ते नहीं पर मैंने अपने पिताजी को कष्ट करते हुए देखा हैं अपने बच्चों के भविष्य के लिए दिन रात मेहनत करते देखा हैं। सच में बेटे के यहं ह्रदय स्पर्शी भाव मेरे ह्रदय तक छू गए और खुशी से आनंदाश्रु बहने लगे फिर थोड़ी देर मैंने सांस ली और फिर आगे बढ़ते चले। आदरणीय राजेश गर्ग जी ने लिखा है, *Always has time for others,* इसमें आदरणीय डॉक्टर कीर्तिवर्धन जी का व्यक्तित्व और निखर कर दिखता हैं। वह कहते हैं, He has a good sense of humour and optimism that he uses to bring happiness to others due to he is easy going nature he make friends easily he is an asset to my community and I am proud to call him my my best friend.
अंत में इतना जरूर कहूंगी कि कर्नाटक में रहते हुए भी मैंने एक पितातुल्य डॉक्टर कीर्तिवर्धन जी का नेह पाया है। मैं तो कुछ नहीं जानती थी बस इतना ही जानती थी कि, डॉ. अ कीर्तिवर्धन जी एक अच्छे और सच्चे इंसान हैं उनके साथ बात करना उनके व्हाट्सएप पर रचनाएं पढ़ना मुझे बहुत पसंद है। वह हमेशा प्रेरणा देते हैं।
आज मैं यह जान चुकी हूं कि इतने बड़े व्यक्तित्व के साथ मेरा स्नेह हो रहा हैं। पता नहीं कभी-कभी मजाक में भी मैं मैसेज करती पर सर जी ने कभी मुझे डांटा नहीं या हम से बात नहीं की। बहुत सहज और सरलता से वे बात करते हैं हमेशा मुझे लिखने की प्रेरणा देते रहते हैं और प्रेरणा दे रहे हैं । हौसला भी बढ़ाते हैं। आज ऐसे प्रतीत हो रहा हैं कि, जैसे श्री कृष्ण भगवान हैं यह अर्जुन को पता चलते ही वह माफी मांगने लगता हैं ।
आज मेरी परिस्थिति भी वैसे ही हैं सच में आज एक तरफ आनंद का महसूस हो रहा हैं, तो एक तरफ अपने आप से लज्जा भी, कि इतने बडे व्यक्तित्व के साथ हमेशा सहजता से बात करती और सर जी भी, जब भी बात करते तो हंस कर और एकदम ऐसे जैसे एक निकट मित्र के भांती ।
उनके व्यक्तित्व का क्या वर्णन करें शब्द ही कम पड जाते हैं । सच में मेरा अहोभाग्य मेरा, मुझे पिता समान, पिता स्वरूप एक अच्छा और सच्चा मित्र मिल गया है। कान्हा की ही दया हैं। अब अपनी लेखनी को विराम देती हूं।

डॉ वसुधा पु.कामत *छवि*, कर्नाटक 


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